लोकायुक्त मामले में हाईकोर्ट नैनीताल ने उत्तराखंड सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा है कि जब राज्य में लोकायुक्त ही नहीं है तो इस संस्था के नाम पर करोड़ों रुपये कहां खर्च हो रहे हैं? इस मामले में हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि मौजूदा वक्त में उत्तराखंड में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नहीं, जिसके पास यह अधिकार हो कि वह बिना शासन की पूर्व अनुमति के किसी भी राजपत्रित अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजीकृत कर सके।
स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला विजिलेंस विभाग भी राज्य पुलिस का ही एक हिस्सा है। जिसका पूरा नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है। ऐसे में प्रदेश में पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच व्यवस्था के लिए लोकायुक्त की तैनाती की जाए।याचिका में यह भी कहा गया कि राज्य में पूर्व के विधानसभा चुनावों में सियासी दलों ने अपनी सरकार बनने पर प्रशासनिक और राजनैतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए एक सशक्त लोकायुक्त की नियुक्ति का वादा किया जो आज तक पूरा नहीं हुआ। मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार की निष्क्रियता को केंद्रीय अधिनियम, लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 63 का उल्लंघन माना है।