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• Sun, 1 Dec 2024 9:00 am IST


मौसम परिवर्तन से पिघल रहे ग्लेशियर, झीलों का बढ़ रहा आकार


देहरादून : प्रकृति और जलवायु को संजोकर रखने वाला हिमालय ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से जूझ रहा है। मौसम में परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पीछे की तरफ खिसक रहे हैं। यही वजह है कि नवंबर खत्म होने वाला है और चोटियां बर्फहीन हैं। इसरो ने इस समस्या का दूसरा पहलू ज्यादा भयावह बताया है।इसरो का कहना है कि ग्लेशियरों के पिघलने के साथ ही हिमालय के ऊपरी हिस्सों में कई झीलें बन गई हैं, जिनका आकार साल दर साल बढ़ रहा है। अगर भविष्य में ये झीलें टूटती हैं तो केदारनाथ जैसी आपदा हिमालय के किसी भी क्षेत्र में आ सकती है। इनमें चमोली जिले में धौली गंगा बेसिन में रायकाना ग्लेशियर का वसुधरा ताल भी शामिल है, जिसका आकार खतरनाक ढंग से बढ़ रहा है। हाल में वाडिया संस्थान की एक टीम झील का सर्वे कर लौटी है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और एडीसी फाउंडेशन की उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (यूडीएएआई) रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमालय में मौजूद ग्लेशियरों पर संकट मंडरा रहा है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं यानी साल दर साल पीछे जा रहे हैं, जिससे हिमालयी क्षेत्र में मौजूद हिम झीलों का तेजी से आकार बढ़ रहा है।उत्तराखंड में करीब 1400 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं। इनमें 500 वर्गमीटर आकार से बड़ी करीब 1266 झीलें हैं। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने इसरो के सेटेलाइट डाटा के आधार पर उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलों को चिह्नित किया है, जिनमें पांच बेहद संवेदनशील हैं, इनमें वसुधरा झील भी है।वैज्ञानिकों के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग और सतह के बढ़ते तापमान से उत्तराखंड में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (हिमनद झील विस्फोट बाढ़) की घटनाएं होती हैं।