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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 19 Jul 2022 4:42 pm IST


क्या काशी दिखाएगी शिक्षा नीति की नई राह


नई शिक्षा नीति एक नई ऊर्जा और गति से काम करे, इसके लिए पिछले हफ्ते वाराणसी में तीन दिनों का अखिल भारतीय शिक्षा समागम हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में क्या चुनौतियां हैं, और क्या सिद्धांत हों, इस पर यह समागम बहस का अच्छा मौका था। इस समागम के संपन्न होने के बाद क्या होगा, यह देखना अभी बाकी है।

सिर्फ हायर एजुकेशन: केंद्रीय शिक्षा नीति- 2020 की ‘नॉलेज इज पावर’ की मान्यता को जमीन पर उतारने के लिए ‘सर्वविद्या की राजधानी’ काशी (वाराणसी) में यह समागम हुआ था। समग्र शिक्षा के तहत इसमें बहस प्राइमरी और माध्यमिक शिक्षा पर भी होनी थी कि कहां-कहां उसमें ढिलाई है। यह भी पता लगता कि हमने क्या पाया है। तब जाकर समग्र चिंतन होता। मगर पूरे समागम की बहसें हायर एजुकेशन की अलग-अलग चीजों पर ही सिमटी रहीं।

बनी हुई हैं दिक्कत: यह समागम केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, यूजीसी और बीएचयू की पहल पर हुआ था। इसमें देश भर से 400 से अधिक कुलपति, शिक्षाविद और शिक्षा क्षेत्र के प्रशासक आए थे। इस समागम में अगले साल शुरू होने वाली डिजिटल यूनिवर्सिटियां, सभी के लिए शिक्षा के समान अवसर, कई भाषाओं में शिक्षा, स्टूडेंट्स के लिए क्रेडिट बैंक और उन्हें किसी भी समय, कहीं भी शिक्षा पाने की सुविधा जैसे सवाल अहम रहे। इसमें जो भी समस्या और शंकाएं सामने आईं, वे पूरी तरह से हल होनी बाकी हैं।

पीएम का इशारा: ‘समागम’ के उद‌्घाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीति के क्रियान्वयन की कई दिक्कतों और चुनौतियों की ओर इशारा किया। टीचर्स को संकुचित दायरे से बाहर निकालने, ‘फ्यूचर रेडी’ युवा पीढ़ी तैयार करने और भारतीय भाषाओं को नई ऊर्जा देने पर पीएम ने खास चर्चा की। उन्होंने ‘लैब टु लैंड’ और ‘लैंड टु लैब’ के रोड-मैप पर जोर दिया। उनका फोकस रहा कि ‘परिणाम और प्रमाण’ की अवधारणा तो आए ही, शिक्षा की प्रामाणिक और समाजोपयोगी भूमिका भी लौटे।

 पाने हैं कई जवाब: भारत में शिक्षा नीति का सफर 50 वर्ष पुराना है। 1968 में कोठारी कमिशन ने शिक्षा के लिए ‘संपूर्ण मौलिक पुनर्रचना’ के लिए सुझाव दिए थे। 1986 में गठित आयोग ने शिक्षा के अवसर की असमानताएं दूर करने के लिए रिपोर्ट दी थी। तीसरी शिक्षा नीति (2020) से पहले की दो शिक्षा नीतियों की रिपोर्ट की सिफारिशें लागू ही नहीं की गईं। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में गठित कमिटी की रिपोर्ट भी सालों से धूल फांक रही है। ऐसे में तीसरी शिक्षा नीति से जुड़े कई सवालों के जवाब पाने थे।

खास बात यह कि इस समागम में तीन दिनों तक खुद केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान मौजूद रहे। हालांकि हायर एजुकेशन की भी जो दिशा और चुनौतियां हैं, तात्कालिक समागम होने के बावजूद इससे उन पर दूरगामी परिणामों की उम्मीद की जा सकती है। शिक्षा मंत्री ने साफ कहा कि सभी कुलपति 3 दिनों के लिए अपनी यूनिवर्सिटी भूल जाएं और सभी सत्रों में बैठें। आमतौर पर ऐसा कम ही देखने को मिलता है।

वेतन-पेंशन से आगे: ‘समागम’ के सैद्धांतिक निष्कर्षों का नैशनल लेवल पर लागू होना तो भविष्य ही बताएगा, पर यह तय है कि 21वीं सदी भारत को वैश्विक ज्ञान शक्ति मानेगी। नई शिक्षा नीति-2020 का मूल मंत्र ‘स्टूडेंट्स फर्स्ट’ है। समागम में एजुकेशन में इनोवेशन पर भी काफी बात हुई। यूजीसी की जगह नैशनल हायर एजुकेशन कमिशन, ज्ञान के प्राचीन स्रोतों का संरक्षण, बेहतर टीचिंग मैनेजमेंट जैसी चीजों पर देश की नजर बनी रहेगी। सारी भारतीय भाषाओं में पाठ्य सामग्री और नई शिक्षा नीति के मुताबिक टीचर्स को तैयार करने की चुनौती पर भी चर्चा हुई। 12 भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई कैसे होनी है, इस पर भी सोचा गया। अनुसंधान, आविष्कार और वेतन-पेंशन से आगे की सोच वाले शिक्षकों की पीढ़ी तैयार करने की चुनौती इस विमर्श का मूल थी।

300 साल पहले सन 1835 में मैकाले की नौकरशाह तैयार करने वाली शिक्षा पद्धति से अलग भारतीय शिक्षा को अपनी जड़ों की ओर ले जाने में नई शिक्षा नीति- 2020 के सामने कठिनाइयां तो हैं लेकिन सरकारी और गैर सरकारी शक्तियां मिलकर कोशिश करें तो इसके लक्ष्य पाए जा सकते हैं।

सौजन्य से : नवभारत टाइन्स