जर्मनी के दार्शनिक Eugen Herrigel (यूजीन हेराइगल) ध्यान के जरिए शांति पाने के लिए प्रयोग कर रहे थे। इसके लिए वह कई साधु-संतों, विद्वानों से मिले, पर वह अपने मकसद में सफल नहीं हो पाए। इसके लिए उन्होंने तीन वर्षों तक जापान में रहकर ध्यान के कई प्रयोग किए। फिर भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिल पाई। उन दिनों वह जापान में एक होटल में रह रहे थे। जब निराश होकर वह होटल छोड़ रहे थे, तब होटल मालिक ने रुकने की सलाह दी।
इस बीच होटल मालिक ने एक शाम होटल की ऊपरी छत पर हेराइगल की मुलाकात बोकोजू नाम के एक फकीर से करवाई। कुछ और लोग भी उनसे मिलने आए। बोकोजू ध्यान के बारे में बता रहे थे। उसी दौरान अचानक भूकंप आ गया और सभी ने झटके महसूस किए। डरकर कुछ लोग भागने लगे। हेराइगल भी उठकर चलने को तैयार हुए तो देखा कि बोकोजू आंखें बंद करके स्थिर बैठे हुए हैं। हेराइगल ने सोचा, जब बोकोजू नहीं उठ रहे हैं, तो मैं क्यों उठूं? वह भी हिम्मत करके आंखे बंद कर बैठ गए। उन्हें समय का भी आभास न रहा।
थोड़ी देर बाद भूकंप शांत हुआ और बोकोजू ने अपना ध्यान तोड़कर आंखें खोलीं और चर्चा आगे बढ़ाई। चर्चा समाप्त होने पर हेराइगल ने बोकोजू से पूछा- भूकंप आने पर अन्य लोगों की तरह आप क्यों नहीं भागे। फकीर ने जवाब दिया- आपने ध्यान से देखा नहीं, मैं भी भागा था। फर्क सिर्फ इतना था कि दूसरे लोग बाहर की तरफ भागे, मैं भीतर की तरफ भागा था और जहां जाकर रुका वहां न तूफान था, न भूकंप। ध्यान का यही चरम है, जहां बाहरी वातावरण चेतना को प्रभावित न कर सके। हेराइगल की उलझन यह बात सुनकर शांत हो गई थी।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स