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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 16 Sep 2022 2:52 pm IST


हिंदी दिवसः अमीर खुसरो थे हिंदी के वास्तविक जन्मदाता


73 वर्षों बाद पहली बार भारत सरकार का गृह मंत्रालय दिल्ली से बाहर गुजरात के सूरत में हिंदी दिवस समारोह और द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन आयोजित कर रहा है। यह संकल्पना उचित और प्रासंगिक है। हिंदी और राजभाषा के प्रति समर्पित देश भर के 8 हजार से अधिक हिंदीसेवियों का यह महासमागम हिंदी की प्रगति यात्रा का ऐतिहासिक पड़ाव होगा।

विकासशील भाषा
1949 में हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद अब तक की प्रगति का आकलन करें तो साफ है कि केवल कानून से हिंदी की प्रगति संभव नहीं है। इसके लिए हमें सभी में अपनी भाषा के प्रति गौरव की भावना का सृजन करना होगा। हिंदी विकासशील भाषा है। सृजनात्मक साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में अनेक कालजयी रचनाओं का भंडार हिंदी में उपलब्ध है, जो उसके रचनाकोश को विश्व साहित्य स्तर पर एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में स्थापित करने में पूर्ण सक्षम और सफल है। हिंदी में अनेक पारिभाषिक शब्दावलियों, शब्दकोशों, ज्ञानकोशों और ‘इनसाइक्लोपीडिया’ का प्रकाशन भाषा-साहित्य की दृष्टि से अद्भुत रहा है।

किसी एक की नहीं
हिंदी के विकास क्रम से स्पष्ट है कि इसे किसी एक विशेष वर्ग की भाषा मानना न्यायसंगत नहीं होगा। हिंदी साहित्य और भाषा में विभिन्न वर्गों का योगदान ऐतिहासिक रहा है। जायसी, रहीम, रसखान, नजीर बनारसी, सैयद ईशा अल्ला खां और अमीर खुसरो आदि के योगदान पर भारतेंदु ने लिखा था, ‘इन मुसलमान कविजन पर कोटिन हिंदू वारिये…।’ हिंदी को संस्कृत ने स्वरूप और अरबी, फारसी जैसी विदेशी तथा पालि, प्राकृत जैसी देसी भाषाओं के मिश्रण ने व्यापक आधार दिया है। जिस भाषा वृक्ष को इतनी सारी बोलियां और भाषाएं सींचें, उसकी मजबूती का अंदाजा लगाया जा सकता है।

खुसरो की हिंदवी
पुरातन हिंदी का अपभ्रंश के रूप में जन्म 400 ई. से 550 ई. के बीच हुआ, जब वल्लभी के शासक धारसेन ने अपने अभिलेख में ‘अपभ्रंश साहित्य’ का वर्णन किया। प्राप्त प्रमाणों में 933 ई. की ‘श्रावकचर’ नामक पुस्तक अपभ्रंश हिंदी का पहला ग्रंथ है। परंतु अमीर खुसरो हिंदी के वास्तविक जन्मदाता थे, जिन्होंने 1283 में खड़ी बोली हिंदी को ‘हिंदवी’ नाम दिया। तभी से यह हिंदवी हिंदी बनती गई, और पूरी दुनिया में निरंतर पल्लवित-पुष्पित होती गई। अब जरूरी है कि हिंदी को हम मैत्रीपूर्ण संबंधों को दृढ़ता प्रदान करने वाली भाषा के रूप में विकसित करें।

गांधीजी का सपना
‘एक विश्व-एक परिवार’ महात्मा गांधी की उस संकल्पना का ही विस्तृत रूप है, जिसमें ‘एक राष्ट्र’ और ‘एक राष्ट्रभाषा’ के माध्यम से दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना हुई थी। गांधी जी के सपने को सार्थक करने के लिए हिंदी को भारत ही नहीं विश्व भाषा मंच पर प्रतिष्ठित करने का संकल्प आवश्यक है। द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के गुजरात में आयोजन के समय हिंदी के लिए महात्मा गांधी, सरदार पटेल, काका कालेलकर, स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे व्यक्तित्वों का योगदान ऐतिहासिक और अविस्मरणीय है।

अदालत में हिंदी
कानूनी क्षेत्र में हिंदी की प्रगति धीमी रही है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्यायिक प्रक्रिया की भाषा को स्थानीय एवं सरल बनाने की बात कही थी। उनका यह मत महत्वपूर्ण है कि उच्च न्यायालयों के आदेशों की प्रति मुकदमे के पक्षकारों की क्षेत्रीय भाषा में अनुवादित कर उपलब्ध कराई जानी चाहिए। यह जरूरी है कि जनता तक न्याय पहुंचे, लेकिन यह भी तय किया जाए कि संबंधित पक्षकार उस इंसाफ को अपनी परिचित भाषा में समझ सके। लिहाजा ऐसी प्रणाली विकसित की जा सकती है जिसमें हाईकोर्ट के निर्णयों की प्रमाणित अनूदित प्रति स्थानीय भाषा में उपलब्ध हो।

बाजार पर राज
हिंदी के प्रभाव का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जिन सैटलाइट चैनलों ने भारत में अपने कार्यक्रमों का आरंभ अंग्रेजी भाषा से किया था, अब अपने कार्यक्रम हिंदी में दे रहे हैं। ‘हू वांट्स टू बी मिलियनेयर’ की हिंदी कॉपी ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की लोकप्रियता ने हिंदी के झंडे गाड़े हैं। एक अनुमान के मुताबिक हॉलिवुड फिल्मों को हिंदी मे डब करने का बिजनेस हजारों करोड़ रुपयों का है। फिर भी हिंदी को पूरे देश की संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करना चुनौती भरा कार्य है। यह कार्य सभी भारतीय भाषाओं के सहयोग और समर्थन के बिना पूरा नहीं हो सकता।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स