मौसम के पैटर्न में इतनी तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं कि उसका सटीक अनुमान लगाना मुश्किल होता जा रहा है। दिल्ली एनसीआर में पूरी जुलाई इसकी झलक देखने को मिली। निर्धारित समय से पहले मॉनसून छा जाने के बावजूद यह इलाका अच्छी बरसात के लिए तरसता रहा। मौसम विभाग लगभग हर दूसरे दिन तेज़ बारिश का अनुमान जताता, लेकिन बादल एक जगह कुछ देर बरसते और बाकी इलाकों को सूखा छोड़ जाते।
बारिश ने ऐसा तरसाया कि दिल्ली में दस साल की सबसे गर्म जुलाई का रेकॉर्ड बन गया, जब रात का तापमान 27 से 28 डिग्री तक बना रहा। 30 जुलाई को तो दिन का तापमान 40 डिग्री के नज़दीक पहुंच गया। फिर, महीने के आखिरी दिन की शाम से बादल ऐसे बरसे कि पूरा दिल्ली एनसीआर पानी-पानी हो गया। जलमग्न सड़कों पर देर रात तक लोग फंसे रहे, तो कई उफनते नालों में समा गए।
मॉनसून का ऐसा खतरनाक मिज़ाज देशभर में देखने को मिल रहा है। कहीं तो एक साथ बहुत अधिक मात्रा में पानी बरसकर तबाही मचा रहा है, तो कुछ इलाके अच्छी बरसात के लिए तरस रहे हैं। एक्सपर्ट इसे वैश्विक तापमान में तेज़ी से बढ़ोतरी का परिणाम बताते हुए चेता रहे हैं कि भविष्य में ऐसा पैटर्न और अधिक देखने को मिलेगा। यही वजह है कि पहले जहां पूरे मॉनसून सीज़न में एक समान बरसात देखने को मिलती थी, अब बादल फटने जैसी घटनाएं आम होती जा रही हैं। एक छोटे से इलाके में एकत्र होकर बादल ऐसे बरस रहे हैं मानों फट पड़े हों।
वायनाड में कुछ ऐसा ही हुआ। एक स्थान पर ही इतनी अधिक बारिश हो गई कि लैंडस्लाइड में कई गांव बह गए, जिनमें तीन सौ से अधिक लोगों की मौत हो गई, जबकि इससे कहीं अधिक लापता बताए जा रहे हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी बादल फटने व भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। पहाड़ों पर जिस तरह से बेतरतीब निर्माण की खुली छूट दी गई, वह हम पर भारी पड़ रहा है।
विरोधाभास देखिए कि देश का एक हिस्सा बाढ़ जैसी आपदा झेल रहा तो दूसरा गर्मी में झुलस रहा है। कश्मीर में गर्मी ने 25 साल का रेकॉर्ड तोड़ दिया तो लेह लद्दाख में तापमान इतना बढ़ गया कि फ्लाइट्स कैंसल करनी पड़ गईं। 37 डिग्री सेल्सियस के तापमान में विमानों को उड़ान भरने के लिए ज़रूरी थ्रस्ट ही नहीं मिल पा रहा।
ऐसी ही गर्मी का सामना कई यूरोपीय देश भी कर रहे हैं। अफ्रीकी गर्म हवाओं ने दक्षिणी यूरोप को झुलसा रखा है। इटली के 12 शहरों में तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच गया। ब्रिटेन और फ्रांस समेत पश्चिमी यूरोप के देश भी तप रहे हैं। पुर्तगाल में तो पारा 47 डिग्री तक पहुंच गया। जुलाई मध्य में फ्रांस और स्पेन का तापमान 43 डिग्री तो बेल्जियम, जर्मनी, नीदरलैंड और इंग्लैंड के पूर्वी हिस्से में 40 डिग्री तक पहुंच गया। स्पेन, फ्रांस, पुर्तगाल और ग्रीस के जंगलों में आग की वजह से हज़ारों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। सोचिए जिस लू का सामना हम हर साल मई में करते हैं, उसे इस बार यूरोप के ठंडे देशों में रहने वाले लोग भी झेल रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के असर को लेकर पिछले कुछ वर्षों में जितना भी बोला या लिखा गया, वह सब किसी फिल्म की तरह हमारी आंखों के सामने घटित हो रहा है। अनुमानों के विपरीत यह सब कुछ बहुत जल्द होने लगा है। कुदरत के इस संदेश को अब नहीं तो कब समझेंगे।
सौजन्य : नवभारत टाइम्स