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• Tue, 6 Apr 2021 3:46 pm IST


आसमानी बिजली से शुरू हुआ पृथ्वी पर जीवन


पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) और डीएनए (डिऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड) मॉलिक्यूल से हुई, लेकिन इन मॉलिक्यूल्स का निर्माण फास्फोरस के बगैर असंभव था। पृथ्वी पर यह फास्फोरस कहां से आया? इसका जवाब शायद आसमान में कड़कने वाली बिजली के पास है, जिसने धरती पर जीव-जगत के लिए रास्ता बनाया।
नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कहा गया है कि पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास में अरबों वर्ष तक खरबों-खरबों बार बिजली गिरने से चट्टानों में कैद फास्फोरस यौगिक आजाद हो गए और इस तरह से पृथ्वी पर जीवन की राह बनी। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर और अध्ययन के प्रमुख लेखक बेंजामिन हैस ने कहा कि 3.5 अरब से 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी पर जीवन निर्माण के लिए फास्फोरस का मुख्य स्रोत आसमानी बिजली थी। जीवन निर्माण में फास्फोरस की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह तत्व दूसरे आवश्यक तत्वों के साथ मिल कर कार्बनिक पदार्थ बना सकता है। मसलन, ऑक्सीजन के तीन अणुओं और फास्फोरस के एक अणु से बने फास्फेट रसायन डीएनए, आरएनए और एटीपी (एडिनोसिन ट्राइफास्फेट) के मुख्य आधार हैं।
ध्यान रहे कि एटीपी कोशिकाओं की ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। फास्फेट रसायन हड्डियों, दांतों और कोशिकाओं की झिल्ली के भी मुख्य हिस्से होते हैं। करीब चार अरब वर्ष पहले जीवन निर्माण के लिए पानी और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का अभाव नहीं था, लेकिन पृथ्वी का अधिकांश फास्फोरस चट्टानों में कैद था। ऐसे में पृथ्वी ने यह महत्वपूर्ण यौगिक कहां से हासिल किए? एक थियरी कहती है कि प्रारंभिक पृथ्वी को फास्फोरस उल्कापिंडों से मिला। पृथ्वी पर गिरने वाले उल्कापिंडों में फास्फोरस से बना हुआ एक खनिज श्राइबरसाइट मौजूद था, जो पानी में घुलनशील है।
यदि करोड़ों या अरबों वर्षों तक बड़ी मात्रा में श्राइबरसाइट उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरे होंगे, तो उन्होंने उन क्षेत्रों में समुचित मात्रा में फास्फोरस छोड़ा होगा, जहां परिस्थितियां जीवन निर्माण के लिए अनुकूल थीं। लेकिन हैस का कहना है कि 3.5 से 4.5 अरब वर्ष पहले जब पृथ्वी पर जीवन प्रकट हुआ, उस समय पृथ्वी पर उल्कापिंडों के प्रहार की दर में भारी गिरावट हो गई थी, क्योंकि तब हमारे सौर मंडल के अधिकांश ग्रहों और चंद्रमाओं ने अपना आकार ग्रहण कर लिया था। यदि यह बात सही है तो श्राइबरसाइट उल्कापिंडों से फास्फोरस के आने की थियरी संदिग्ध हो जाती है। हैस ने कहा कि श्राइबरसाइट खनिज पृथ्वी पर भी बन सकता है। इसके लिए कुछ जमीन, बादल और आसमानी बिजली के खरबों प्रहार चाहिए। बिजली के प्रहार सतह के तापमान को 2760 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में ऐसे-ऐसे खनिज बन सकते हैं जो पहले मौजूद नहीं हों।
अपने अध्ययन में हैस और उनके सहयोगियों ने एक ऐसी चट्टान के टुकड़े की पड़ताल की, जिस पर बिजली गिरी थी। फिगूराइट नामक यह चट्टान इलिनॉयस में खुदाई के दौरान मिली थी। टीम ने पता लगाया कि बिजली के प्रहार से चट्टान के भीतर श्राइबरसाइट के गोले और कांच जैसे खनिज बन गए थे। टीम ने यह तो प्रमाणित कर दिया कि बिजली के प्रहार से फास्फोरस युक्त श्राइबरसाइट खनिज उत्पन्न हो सकता है। अब उसे यह साबित करना था कि प्रारंभिक पृथ्वी पर गिरने वाली बिजली वातावरण में समुचित फास्फोरस छोड़ने के लिए पर्याप्त थी।
आज पृथ्वी पर हर साल करीब 56 करोड़ बार बिजली चमकती है। चार अरब वर्ष पहले हमारे ग्रह के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का वर्चस्व था। उस समय पृथ्वी ज्यादा गर्म थी और उस समय तूफान भी ज्यादा आते थे। टीम ने हिसाब लगाया कि उस समय हर साल 1 अरब से लेकर 5 अरब बार बिजली कड़की होगी। रिसर्चरों ने अनुमान लगाया कि हर साल जमीन पर 10 करोड़ से लेकर एक अरब बार बिजली का प्रहार हुआ। उनकी गणना के अनुसार एक अरब वर्ष की अवधि में युवा पृथ्वी पर बिजली के एक क्विंटिलियन (एक के बाद 18 शून्य) प्रहार हुए। टीम ने हिसाब लगाया कि 4.5 अरब से 3.5 अरब वर्ष पहले बिजली के प्रहारों से पृथ्वी को हर साल 110 से 11000 किलोग्राम फास्फोरस मिला होगा।
लेखकः मुकुल व्यास