दिल्ली की भलस्वा लैंडफिल में सुलगती आग बुझाए नहीं बुझ रही है। लैंडफिल या जगह-जगह इकट्ठे कूड़े में आग की समस्या से सिर्फ दिल्ली नहीं जूझती, देश के ज्यादातर इलाकों में ऐसी घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। इस सुलगती समस्या के पीछे छुपे मूल कारण को समझने और सुलझाने की सख्त जरूरत है।
यह एक कड़वा सच है कि जिस तेजी से देश में कूड़े का ढ़ेर बढ़ रहा है, कूड़ा प्रबंधन उतना ही सुस्त है। विश्व बैंक की ‘What A Waste 2.0’ रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर साल 27.71 करोड़ टन कूड़ा निकलता है। यह साउथ एशिया देशों का 80 फीसदी कूड़ा है। दुनिया भर का 13 फीसदी कूड़ा सिर्फ भारत में ही पैदा होता है। कूड़ा प्रबंधन नीति, साधन और जागरूकता का अभाव ही है कि कुल कूड़े का लगभग 77 फीसदी हिस्सा खुले में फेंका जाता है। सिर्फ 5 फीसदी कूड़ा रीसाइक्लिंग के लिए पहुंचता है और 18 फीसदी कूड़े को कंपोज किया जाता है।
आने वाले समय में स्थिति और खराब होने वाली है। विश्व बैंक की रिपोर्ट यह भी बताती है कि वर्ष 2030 तक 38.78 करोड़ टन और 2050 तक 54.33 करोड़ टन कूड़ा भारत में पैदा होगा। विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि इस समय दुनिया भर से लगभग 2 अरब टन कूड़ा निकलता है। 2050 तक यह 3.4 अरब टन हो जाएगा। चिंताजनक बात यह है कि अविकसित देशों में 90 फीसदी कूड़ा प्रबंधन नहीं हो पाता है। कूड़ा प्रबंधन में होने वाली खामियों का सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है।
भारत में कूड़ा प्रबंधन के नाम पर अभी तक ज्यादातर कूड़े को खुले में डालने और जलाने का तरीका ही अपनाया जाता है। इससे देश में प्रदूषण स्तर के साथ-साथ ढेरों समस्याएं भी बढ़ रही है। स्विस ऑर्गनाइजेशन की ‘वर्ल्ड एयर क्वॉलिटी रिपोर्ट 2020′ के मुताबिक दुनिया के 30 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में ही हैं। अस्थमा, कैंसर, अविकसित बच्चों की पैदाइश, इंफर्टिलिटी आदि के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कई अध्ययन इसका सीधा संबंध वायु प्रदूषण से जोड़ रहे हैं। जेएनयू की एक रिपोर्ट बताती है कि लैंडफिल में जमा कूड़े में जिंक, लेड, निकल, क्रोमियम जैसे जहरीले पदार्थ होते हैं। रिस कर ये हमारे ग्राउंडवाटर तक पहुंच जाते हैं। पानी के साथ ही ये मिट्टी को भी जहरीला बना रहे हैं।
भारत भर में मौजूद लगभग 1700 लैंडफिल में से ज्यादातर कूड़े से भर चुके हैं। सही प्रबंधन के अभाव में यहां ढेरों समस्याएं पैदा हो रही हैं। आग लगना ऐसी ही एक समस्या है। समय की मांग है कि कूड़ा प्रबंधन के काम में कोताही ना बरती जाए। शुरुआत हम घर से कर सकते हैं। घरों में गीले-सूखे और खतरनाक कूड़े को अलग-अलग करके कूड़ा प्रबंधन में एक अहम रोल अदा कर सकते हैं। चीजों को फेंकने की बजाय उसे ठीक कराना, कूड़े को दोबारा इस्तेमाल करने योग्य बनाना, पेपरवर्क की जगह तकनीक के इस्तेमाल जैसे कुछ तरीके हैं जिनसे कूड़ा कम किया जा सकता है। कई विकसित देशों ने इन्हीं तरीकों से अपने कूड़ा प्रबंधन को गति दी है। इस मामले में जर्मनी ने लीड ली हुई है। वहां हर साल 10 लाख टन कूड़ा कम हो रहा है। स्वीडन भी जीरो वेस्ट की दिशा में बड़ा काम कर रहा है।
हालांकि भारत सरकार ने दो अक्टूबर 2014 को देश में स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया था। कूड़े से निपटने के लिए इसके तहत अभी तक कई कारगर कदम उठाए गए हैं। 20 शहरों को वेस्ट फ्री करने की शुरुआत की गई है। कई शहरों जैसे सूरत, पूना, एलीपी-केरल, बोबीली-आंध्र प्रदेश में कूड़ा निपटारे को लेकर काफी अच्छे काम चल रहे हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में जहां 18 फीसदी वेस्ट प्रोसेस किया जाता था, वर्ष 2021 में यह 70 फीसदी तक पहुंच गया है। इसे 100 फीसदी तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन मंजिल बहुत दूर है, और इसे पाने के लिए सरकार के साथ-साथ हमें भी कूड़े की छंटनी से लेकर इसे कम से कम करने के तरीकों पर ध्यान देना होगा।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स