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• Mon, 13 May 2024 12:18 pm IST


चीनी फौज बदल रही, भारत न रहे पीछे


जब भारत असाधारण रूप से लंबी चुनाव प्रक्रिया में उलझा हुआ है, बाकी दुनिया अपनी प्राथमिकताओं पर आगे बढ़ रही है। पिछले हफ्ते, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने देश के सशस्त्र बलों के व्यापक पुनर्गठन की ओर कदम बढ़ाते हुए पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की डिविजन स्ट्रैटजिक सपोर्ट फोर्स (SSF) को भंग करने का आश्चर्यजनक फैसला किया। इस डिविजन का गठन उन्होंने 2015 में किया था, जिसका मकसद PLA के स्पेस, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और साइकॉलजिकल वॉरफेयर से जुड़े हिस्सों का विलय करना था।

सूचना सहायता बल : इसके स्थान पर, शी ने सूचना सहायता बल (ISF) की शुरुआत की, जिसे उन्होंने PLA का एक नया रणनीतिक घटक बताया और कहा कि यह नेटवर्क सूचना प्रणाली को समन्वित रूप से आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा। इस फैसले के बाद अब PLA में चार प्राथमिक शाखाएं हो गई हैं – थल सेना, नौसेना बल, वायु सेना और रॉकेट बल। इसके अतिरिक्त, चार सहायक इकाइयां हैं- संयुक्त लॉजिस्टिक सपोर्ट फोर्स और SSF से प्राप्त तीन डिविजन।

भ्रष्टाचार विरोधी अभियान : शी के मुताबिक, इससे चीनी सेना को ‘मौजूदा दौर के युद्धों में प्रभावी ढंग से शामिल होने और जीत हासिल करने’ में मदद मिलेगी। वैसे, इस कदम की भूमिका पिछले साल PLA के भीतर चलाए गए उनके व्यापक भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से तैयार हुई। कई प्रभावशाली जनरल इस अभियान की चपेट में आए। चीन की परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइलों के तेजी से बढ़ते भंडार के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार रॉकेट फोर्स में भी इस वजह से डिसरप्शन आया।

शी की निगरानी को मजबूती : पुनर्गठन का ताजा प्रयास PLA की रणनीतिक क्षमताओं पर शी की प्रत्यक्ष निगरानी को मजबूत करता है और भविष्य में युद्ध के बदलते स्वरूप के मद्देनजर AI और अन्य उभरती टेक्नॉलजी का कुशलतापूर्वक उपयोग सुनिश्चित करने की जरूरत पर जोर देता है। यह चीन के लिए इस अर्थ में भी अहम है कि वह अपनी सेना को बदलते रणनीतिक हालात और मौजूदा दौर में युद्ध के तेजी से विकसित होते स्वरूप के अनुकूल ढालने की कोशिश कर रहा है।

आधुनिकीकरण का दशक : पिछले एक दशक में चीन ने अपनी सैन्य क्षमताओं का व्यापक आधुनिकीकरण किया है, जिसका लक्ष्य PLA को क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम अजेय ताकत में तब्दील करना है। इस आधुनिकीकरण अभियान में तकनीकी प्रगति, संगठनात्मक सुधार और सैद्धांतिक विकास सहित विभिन्न पहलू शामिल हैं।

अत्याधुनिक हथियार : चीन के सैन्य आधुनिकीकरण का केंद्र बिंदु अत्याधुनिक हथियार और साजो-सामान का विकास व अधिग्रहण रहा है। इसमें एयरक्राफ्ट कैरियर्स की कमिशनिंग के जरिए नौसैनिक क्षमता में वृद्धि करना, अगली पीढ़ी के लड़ाकू जेट विमानों के जरिए वायु सेना का आधुनिकीकरण और उन्नत बैलिस्टिक व क्रूज मिसाइलों के जरिए मिसाइल फोर्स को मजबूती देना शामिल है।

संगठनात्मक सुधार : इसके अलावा, कमांड संरचनाओं को सुव्यवस्थित करने, संयुक्त संचालन में सुधार और PLA की समग्र दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए संगठनात्मक सुधार शुरू किए गए हैं। इन सुधारों में नए कमांड और थिएटर कमांड की स्थापना के साथ-साथ सैन्य कर्मियों को पेशेवर और आधुनिक बनाने के प्रयास शामिल हैं।

भारत के लिए चुनौतियां : कहने की जरूरत नहीं कि चीन का सैन्य आधुनिकीकरण भारत के लिए कई तरह की चुनौतियां पेश करता है। चीन की बढ़ी हुई सैन्य क्षमताएं इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं। देखा जाए तो इस क्षेत्र में चल रहे विवादों पर चीन के रुख में पहले के मुकाबला ज्यादा आक्रामकता अभी से स्पष्ट होने लगी है। ऐसे में स्वाभाविक ही दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव का खतरा बढ़ गया है।

रक्षा पर खर्च : वैसे भी चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति का भारत की रक्षा योजनाओं और सुरक्षा चिंताओं पर प्रभाव पड़ता ही है। संभावित चीनी आक्रामकता के खिलाफ एक विश्वसनीय प्रतिरोध बनाए रखने के लिए भारत अपने सैन्य आधुनिकीकरण प्रयासों में निवेश बढ़ाने को मजबूर है।

मेक इन इंडिया : पिछले दशक में भारत ने अपने सशस्त्र बलों को आधुनिक बनाने और इनकी दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से रक्षा सुधारों का सिलसिला शुरू किया है। एक महत्वपूर्ण सुधार ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के माध्यम से स्वदेशी रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देना है। इस पहल का उद्देश्य रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना, आयात पर निर्भरता कम करना और रक्षा क्षमताओं में भारत की आत्मनिर्भरता को मजबूत करना है।

खरीद प्रक्रिया : इसके अलावा, महत्वपूर्ण मिलिटरी हार्डवेयर और प्रौद्योगिकी के अधिग्रहण में तेजी लाने के लिए रक्षा खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) और रणनीतिक साझेदारी मॉडल जैसे उपायों का उद्देश्य खरीद प्रक्रियाओं को सहज और सुविधाजनक बनाना और रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।

बुनियादी ढांचे का विकास : भारत की सीमाओं पर, विशेषकर चीन से लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में, रक्षा बुनियादी ढांचे के विकास पर भी जोर बढ़ाया गया है। इसमें सशस्त्र बलों की मोबिलिटी बढ़ाने और उनके लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट बढ़ाने के मकसद से सड़कों, हवाई क्षेत्रों और अन्य बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है। इसके अलावा, भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों शाखाओं – थल सेना, नौसेना और वायु सेना – के बीच एकीकरण को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है।

थिएटर कमांड पर बहस : फिर भी तेजी से सुधार और व्यापक पुनर्गठन की जरूरत बनी हुई है। देश में थिएटर कमांड पर बहस अभी भी अटकी हुई है। मानव संसाधन और टेक्नॉलजी का अनुपात वाजिब स्तर से काफी कम है। चीन के हालिया कदम भारत के लिए एक चेतावनी हैं। भारतीय सशस्त्र बलों को 21वीं सदी के युद्ध लड़ने लायक बनाना जून में आने वाली सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स