Read in App

DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 13 Mar 2023 1:35 pm IST


सिर सजदे में नजरें तलाश में


कई दिनों से मन रह-रह कर अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाने का हो रहा था। हर बार यह कार्यक्रम किसी न किसी वजह से टल जाता था, पर इस बार पक्के इरादे से गरीब नवाज की दरगाह पर जाने की ठान ही ली। होली से दो दिन पहले हम पति-पत्नी नई दिल्ली से शताब्दी ट्रेन से निकल पड़े। ट्रेन सही समय पर अजमेर शरीफ स्टेशन पहुंची। हम लोग स्टेशन से बाहर आए और दरगाह जाने के लिए सवारी की तलाश करने लगे। अभी हम ऑटो पर बैठे ही थे कि ऊंचे कद के एक गोरे-चिट्टे नौजवान ने हमसे आकर पूछा, दरगाह चलेंगे क्या? हमें लगा, तीर्थ स्थानों पर दर्शन कराने के नाम पर पैसे ऐंठने वालों की टोली से हमारा साबका पड़ने वाला है। पत्नी ने भी इशारा किया कि उसे अनदेखा कर सीधे दरगाह पहुंचना ठीक होगा। मैंने ऑटो वाले से आगे बढ़ने को कहा। इसी बीच युवक ने फिर इसरार किया तो मेरा मन बदल गया। मैंने पत्नी से कहा कि दर्शन ही तो कराएगा, हमारे पास ऐसा क्या है जो लूट ले जाएगा? सुनकर वह भी मान गईं।

अब हम ऑटो से उतर गए। नौजवान आगे-आगे रास्ता दिखाते हुए चल रहा था। जाने कौन-कौन सी गलियों से होते हुए हम दरगाह पहुंचे। युवक ने दरगाह पर चढ़ाने के लिए हमारी पसंद की चादर और फूल आदि भी खरीदवाए। फिर सम्मान के साथ दरगाह में प्रवेश दिलाया और सजदे के लिए सारी जरूरी रिवायतें-रस्में पूरी कराईं। प्रसाद में हमें गुलाब की कुछ पंखुड़ियां मिलीं। दर्शन के बाद उसने हमें पूरी दरगाह भी घुमाई, एकदम किसी प्रशिक्षित गाइड की तरह। वहां बना जन्नत का दरवाजा दिखाकर बताया कि यह साल भर में चार बार ही खुलता है। इस दरवाजे की खासियत ही यह है कि इसी दरवाजे से ख्वाजा गरीब नवाज नमाज पढ़ने जाया करते थे। फिर उसने पानी का वह बड़ा सा स्रोत दिखाया, जिससे यहां आने वाले श्रद्धालु खुद को साफ करते हैं और तभी दरगाह में घुसते हैं।

घूमते हुए अचानक हम किसी कमरे जितनी बड़ी देगचियों के सामने पहुंचे। ये दो थीं। य़ुवक ने बताया कि जिस बड़ी वाली देगची को आप देख रहे हैं, उसमें एक बार में चार हजार चार सौ किलो तक भोजन बनाया जा सकता है। इस देगची को बनाने में सात तरह की धातुओं का प्रयोग किया गया है। इसका आकार 20 फीट है, लेकिन इसका रिम कभी गर्म नहीं होता। इसे अकबर ने बनवाया था और सबसे पहले उसने ही खुद इसमें भोजन बनाया था। अकबर यहां 14 बार आया था। इसी के पास दूसरी देगची है जो कुछ छोटी है। इसमें दो हजार चार सौ किलो तक खाना बनाया जा सकता है। इसे जहांगीर ने बनवाया था।

अब तक हमने परिसर की परिक्रमा पूरी कर ली थी और बाहर मुख्यद्वार पर पहुंच गए थे। युवक ने हमसे कहा कि आप लोग जूते पहन लीजिए। हमने जूते पहनने में लग गए और उसके बाद जब सिर उठाया तो वह नौजवान गायब। हमें उसे शुक्रिया कहना था, लेकिन उसका कहीं अता-पता ही नहीं था। आस-पड़ोस के दुकानदार भी उसके बारे में कुछ नहीं बता पाए। आखिर वह कौन था जो हमें इतने स्नेह और आदर से गरीब नवाज की दरगाह में सजदा करवा कर चला गया? श्रीमती जी बोलीं, जरूर उसने सेवा मान रखी होगी, तभी तो बदले में कुछ पाने की सोचे बगैर चल पड़ा किसी और जरूरतमंद श्रद्धालु को दर्शनलाभ कराने।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स