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• Sat, 6 Mar 2021 3:07 pm IST


सवाल बिखरे थे, जवाब किसी के पास नहीं था


दीप हलधरवरिष्ठ पत्रकार

मुझे दक्षिण कोलकाता में अपने घर से सिंगूर पहुंचने में आधे घंटे का वक्त लगा। वहां एक मंदिरनुमा भवन के सामने कुछ लोग बैठे हुए थे। बीड़ी पीते हुए वे गांव से जुड़ी गॉसिप में मशगूल थे। उनमें एक ने कहा- फासीवाद ने देश को बर्बाद कर दिया है। वह महादेव दास थे जो टीएमसी के सिंगूर ब्लॉक प्रेसिडेंट थे। मैंने उन्हें अपना परिचय दियाबीड़ी ली और बातचीत शुरू हुई।

मैंने उनसे पूछा कि जब ममता की सियासी पहचान ही सिंगूर से जुड़ी है तो फिर वह 2019 में यहां क्यों हार गईंमहादेव ने मुझे घूर कर देखाबोले- सिंगूर ही क्योंमेरी पार्टी 18 सीट हार गई बाहरी पार्टी से। उसने कहा कि मोदी ने पुलवामा नहीं कराया होता तो उन्हें एक भी सीट नहीं मिलती। अब क्या? 2021 मेंउन्होंने कहाअब बीजेपी को यहां कुछ नहीं मिलेगा। उनसे बातचीत करते हुए घंटे भर हो गए। वह बोले कि कहीं जाकर खाना खाते हैं। वहीं खाते हुए बात करेंगे। वहां उनके दूसरे मित्र भी आने वाले थे। मैं अपनी गाड़ी से आगे बढ़ामहावीर अपनी साइकिल से। हमलोग हाईवे के किनारे एक ढाबे पर रुके। मछली-भात ऑर्डर किया। ढाबे के पीछे टीवी पर अक्षय कुमार-शिल्पा शेट्टी की चुरा के दिल मेरा गोरिया चलीगाना चल रहा था। फिर वहां इन सबों ने विस्तार से बताया कि किस तरह ममता ने उनकी जमीन को बचाया। महादेव ने कहा- जमीन हमारे लिए धंधा नहीं भावना है। वे सभी फ्लैशबैक में चले गए और संघर्ष के उन दिनों की बात करने लगे। तो फिर सिंगूर ने ममता के खिलाफ वोट क्यों कर दियामैंने पूछा। दबी जुबां में भाई-भतीजावाद-भ्रष्टाचार की कहानियां सामने आने लगीं। बात बस इतनी या कुछ और भीसीधा जवाब नहीं था किसी के पास। बात करते हुए शाम हो चुकी थी। कोलकाता लौटते हुए नैनो प्लांट पर गोधूलि किरण बहुत कुछ बता रही थी। खामोश बयार में पोरिवर्तन की थाप थी। लेकिन पोरिवर्तन के स्वरूप को लेकर अभी भी कई सवाल बिखरे पड़े थे।

 छोटे लोक बनाम भद्रलोक

दक्षिण कोलकाता के संतोषपुर स्थित काली मंदिर के नजदीक चाय दुकान पर भीड़ नहीं थी। कोविड के कारण यहां नींबू चाय पीने वालों की संख्या कम हो गई है। यहां मेरी बात मनोरंजन बायपाड़ी से होती है। वे कहते हैं कि जबसे ममता बनर्जी ने उन्हें दलित साहित्य अकादमी का चेयरमैन बनायातब से लोग उनसे जल रहे हैं। बायपाड़ी की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं रही है। 1950 में पाकिस्तान से निर्वासित होकर कोलकाता में बसने आए बायपाड़ी की उम्र बस साल थी। रिफ्यूजी की तरह रहते हुए बायपाड़ी ने गरीबी के कारण रिक्शा चलाया। पुलिस के शोषण का शिकार हुए बाद में नक्सल बने। पुलिस की गोलियों से बचे। बायपाड़ी ने अमीर घरों के शौचालय तक साफ किए। बाद में उन्होंने कई किताबें लिखी जो ग्लोबल स्तर पर सराही भी गईं। 2018 के जयपुर लिस्ट फेस्ट में उनकी किताब को बहुत चर्चा मिली थी। 23 साल एक स्कूल में रसोईया के रूप में काम करने वाले बायपाड़ी को उनकी किताब छपवाने में महाश्वेता देवी ने बहुत मदद की थी। मैं बायपाड़ी से तीन साल पहले ठीक इसी जगह पर मिला था। तब वह मुझे सुंदरवन में उस जगह पर ले गए थे जहां सत्तर के दशक में बड़ा नरसंहार हुआ था। वे उस नरसंहार में बचने वाले चंद खुशकिस्मत लोगों में थे। उन्होंने कहा- यहां नरसंहार इसीलिए किया गया था क्योंकि यहां सारे छोटी जातियों के लोग थे। तब से उनके मन में सामाजिक भेदभाव के खिलाफ बागी स्वर आते रहे। अब जब से ममता बनर्जी ने उन्हें नया ओहदा दिया तब से उन्हें लगातार बधाइयां मिल रही हैं। विधानसभा चुनाव से पहले दलितों को अपने पक्ष में करने की यह ममता बनर्जी की कोशिश मानी जा रही है। वे इसे छोटे लोक की भद्रलोक के सामने हक वापसी की कोशिश कहते हैं। टीएमसी-बीजेपी दोनों दल समाज के इस विभाजन के बीच अपने लिए अधिकतम हिस्सा पाने की पूरी कवायद कर रहे हैं। 2019 के आम चुनाव में दलितों ने बीजेपी को वोट दिया था और इनके इलाके में उसे बड़ी जीत मिली थी।

टॉलिवुड कलाकारों की भागीदारी
बंगाल चुनाव में इस बार बार टॉलिवुड के स्थानीय कलाकारों की बड़ी भागीदरी देखी जा रही है। इसी भागीदारी के बीच टीएमसी से सांसद बनीं मिमी अपनी बात बताती हैं। वह दक्षिण कोलकोता से सांसद हैं। वह इस संभावना को खारिज करती हैं कि इस चुनाव में बीजेपी ममता बनर्जी को हरा देगी। तब क्या होगा जब बीजेपी सौरव गांगुली को अपना उम्मीदवार बना देगीइस पर मिमी उनकी तारीफ करती हैं लेकिन कहती है कि दीदी आखिर दीदी है। लेकिन कभी ममता बनर्जी की प्रशंसक रहीं रूपांजन मित्रा की राय अलग है। इस कलाकार की तारीफ ममता बनर्जी भी कर चुकी हैं। लेकिन रूपांजन अब कहती हैं कि वक्त के साथ ममता बदल गईं। शुरू में ममता बनर्जी ने टॉलिवुड के लिए बहुत कुछ किया। आधुनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ कदम भी उठाए। तब कलाकार उनके साथ खड़े भी थे। कई कलाकारों ने कहा कि बाद में ममता बनर्जी की पार्टी दबाव की राजनीति करने लगी। जो उनकी धारा से अलग विचार रखते थे उन्हें काम मिलना मुश्किल होने लगा। ऐसा कई कलाकारों के साथ हुआ। लोग बोलने से बचते रहे। टॉलिवुड में पुलिस का हस्तक्षेप बढ़ने लगा। कला समीक्षक इंद्रनील राय ने कहा कि बंगाल में यह नई बात नहीं है। जब सालों तक यहां लेफ्ट का शासन था तब अधिकतर कलाकार उनकी विचारधारा से प्रभावित थे। लेफ्ट के दिग्ग्ज नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य इन कलाकारों के साथ बहुत वक्त गुजारते थे। लेकिन 2012 में जब टॉलिवुड के दिग्गत कलाकार देव अधिकारी को ममता बनर्जी ने लोकसभा का टिकट दिया तब अचानक इंडस्ट्री की धारा बदलने लगी। देव चुनाव लड़े और जीते भी।

सौजन्य - नवभारत टाइम्स