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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 8 Jun 2022 2:38 pm IST


संक्रमण दान क्यों बन रहा है रक्तदान


पिछले दिनों खबर आई कि एक ब्लड बैंक से मिले संक्रमित खून चढ़ाने के कारण चार बच्चे एचआईवी पॉजिटिव हो गए। ये बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित थे, जिसमें मरीज को खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। इससे पहले चेन्नै में एक गर्भवती महिला को संक्रमित रक्त चढ़ाने से एचआईवी इन्फेक्शन होने का मामला आया था। देश में ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं।

संक्रमित रक्त की एक बड़ी वजह देश में खून की अवैध बिक्री है। 1996 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पैसे लेकर खून देने पर बैन तो लग गया है लेकिन इसका काला धंधा अभी भी चल रहा है। वैसे रक्तदान के जरिए देश को जो खून मिलता है, उसमें भी 0.24 फीसदी एचआईवी, 1.18 फीसदी हेपेटाइटिस बी और 0.43 फीसदी मामलों में हेपेटाइटिस सी का संक्रमण पाया जाता है। आधुनिक तकनीक का अभाव, ब्लड टेस्ट में लापरवाही और विंडो पीरियड जैसे कारणों से मरीजों तक इन्फेक्शन पहुंचने की संभावना खासी बढ़ जाती है। कुछ साल पहले एक जनहित याचिका के जवाब में खुद नैशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने बताया था कि 17 महीनों में 2,234 लोग रक्त चढ़ने के बाद एचआईवी का शिकार हुए।

सर्जरी के साथ-साथ कई बीमारियों में भी खून चढ़ाया जाता है। लेकिन संक्रमित रक्त की मार सबसे ज्यादा थैलेसीमिया और हीमोफिलिया के मरीजों पर पड़ती है, क्योंकि इन मरीजों को महीने या 15 दिनों में रक्त की जरूरत पड़ती है। एक अनुमान के मुताबिक 50 फीसदी हीमोफीलिक मरीज खून चढ़ने के दौरान किसी न किसी तरह के इन्फेक्शन का शिकार हो जाते हैं। सबसे ज्यादा तो एचआईवी के शिकार होते हैं और एड्स इनकी मौत की बड़ी वजह बनता है।

खून से संक्रमण फैलने की एक बड़ी वजह खुद खून की कमी है। नैशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल के मुताबिक देश के हर जिले में एक ब्लड बैंक होना अनिवार्य है। पिछले दिनों राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया गया कि अरुणाचल प्रदेश, असम, नगालैंड, बिहार, मणिपुर जैसे राज्यों के 63 जिलों में ब्लड बैंक नहीं है।

विश्व में कहीं भी संक्रमित रक्त की जांच सौ फीसदी सुरक्षित नहीं है, बावजूद इसके बहुत से देश रक्तदान से लेकर उसकी जांच के तरीकों को बेहतर ढंग से अंजाम दे रहे हैं। संक्रमित रक्त के जरिए एचआईवी फैलने के मामले कनाडा 1985 में ही खत्म कर चुका है। यूएस में ऐसा केस 2008 में अंतिम बार सामने आया। यूके में रक्त के जरिए एचआईवी फैलने का आखिरी मामला 2005 में आया।

रक्त में संक्रमण की जांच के लिए ‘नाट’ (Nucleic Acid Amplification Test- NAAT) सबसे आधुनिक टेस्ट है। लेकिन देश के 2 से तीन फीसदी बैंकों में ही ब्लड टेस्ट के लिए ‘नाट’ उपलब्ध है, और ये ब्लड बैंक कुल रक्त का सिर्फ सात फीसदी ही सटीक तरीके से जांच कर पाते हैं। इसकी कई वजहें हैं। मसलन, देश में अभी तक ‘नाट’ से ब्लड टेस्ट अनिवार्य नहीं है। दूसरे, यह टेस्ट बहुत महंगा है, और इसके लिए आवश्यक प्रक्षिशित स्टाफ और संसाधनों की भी भारी कमी है।

कोई कह सकता है कि ‘नाट’ ही क्यों? दरअसल जब खून में वायरस का लोड बहुत कम होता है तो बहुत सी तकनीकों से यह महीनों तक डिटेक्ट नहीं हो पाता। इसे विंडो पीरियड बोलते हैं। वहीं ‘नाट’ में विंडो पीरियड केवल सात दिन है। सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने ब्लड टेस्ट के लिए ‘एलिसा’ (ELISA- Enzyme Linked Immunosorbent Assay) तकनीक का इस्तेमाल अनिवार्य किया हुआ है। इसमें विंडो पीरियड दो हफ्ते से लेकर तीन महीने तक का होता है। विंडो पीरियड जितना कम रहता है, संक्रमित रक्त मरीजों तक पहुंचने का खतरा उतना ही कम हो जाता है।

हालांकि वर्ष 2010 से 2019 के बीच एचआईवी इन्फेक्शन के नए मामले 37 फीसदी कम हुए हैं। कनार्टक, राजस्थान, यूपी के अलावा कुछ राज्यों ने सरकारी अस्पतालों में ब्लड टेस्ट के लिए ‘नाट’ जरूरी कर दिया है। देश में वर्ष 2019-20 में लाइसेंस युक्त ब्लड बैंकों की संख्या बढ़कर 3321 हो गई है। अब जरूरी है कि सरकारी एजेंसियां खून लेते समय मरीज की मेडिकल हिस्ट्री और रक्त की जांच के लिए बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल करने पर पूरा ध्यान दें।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स