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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 2 Oct 2023 11:37 am IST


लॉन्ग टर्म के लिए क्यों सही है म्यूचुअल फंड


‘म्यूचुअल फंड’ शब्द सामने आते ही आम लोगों का ध्यान तत्काल या तो इस वैधानिक चेतावनी की ओर जाता है कि ‘म्यूचुअल फंड्स बाजार के जोखिमों के अधीन हैं, निवेश करने से पहले कृपया दस्तावेजों को ध्यानपूर्वक पढ़ें’ या इस मार्केटिंग स्लोगन की तरफ कि ‘म्यूचुअल फंड सही है’। मगर इन दोनों पहलुओं में उलझने के बजाय ‘म्यूचुअल फंड’ नाम के इस वित्तीय साधन का मकसद समझने की कोशिश करना ज्यादा उपयोगी हो सकता है।

कब हुई शुरुआत: भारत में म्यूचुअल फंड का आगमन 20वीं सदी में वर्ष 1963 में यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) के गठन के साथ हुआ था। लेकिन म्यूचुअल फंड्स का विचार सबसे पहले 18वीं सदी में नीदरलैंड्स में सामने आया था।

निवेश के इस साधन का आरंभिक संस्करण निर्धारित सीमित समय के लिए (क्लोज-एंडेड) था। यानी निवेश की गई राशि एक निर्धारित अवधि के बाद ही मिल सकती थी। इसे जब चाहें तब निकालना संभव नहीं था। इससे होता यह था कि अगर निवेशक को तय समय में कुछ ज्यादा धनराशि अर्जित करनी हो तो उसे पहले निवेश किए गए उसी फंड में ज्यादा पैसा लगाने के बजाय निवेश का कोई दूसरा साधन चुनना पड़ता था। आजकल इसमें अलग-अलग श्रेणियां होती हैं और उनमें से ज्यादातर प्रचलित श्रेणियां असीमित अवधि की योजनाएं (ओपन-एंडेड स्कीम्स) हैं। असीमित अवधि की योजना में निवेशक को कुछ शुल्क और करों की शर्त पर जब चाहे तब निवेश और निकासी करने की सुविधा मिलती है। समय के साथ निवेश करने के तरीकों और नियम-कायदे में काफी बदलाव हो चुका है, फिर भी इस साधन का प्राथमिक उद्देश्य वही है- निवेशकों को पारदर्शिता के साथ निवेश के अलग-अलग विकल्प मुहैया करना।

छोटे निवेशकों के लिए उपयोगी: बड़ा सवाल यह है कि निवेश का यह साधन किस रूप में उपयोगी माना जा सकता है। आज ब्रोकिंग खाते से संबद्ध पैन कार्ड और बैंक खाताधारक कोई व्यक्ति अपनी पसंद की किसी भी सिक्युरिटी (प्रतिभूति) में निवेश कर सकता है। मगर सिक्युरिटी को समझने की क्षमता हासिल करना आसान नहीं है। इसी बिंदु पर म्यूचुअल फंड उपयोगी साबित होता है। यह निवेश का एक ऐसा साधन है, जो सामान्य निवेशक के लिए एक पोर्टफोलियो के रूप में अनेक सिक्युरिटीज की सुलभता मुहैया कराता है। बाजार में तेजी आए या सुस्ती, निवेशकों को इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि उनकी तरफ से कुछ पेशेवर विशेषज्ञ उनकी लगाई रकम को मैनेज करते हैं।

खुद पर दांव

आरंभिक म्यूचुअल फंड्स के जमाने में भी, निजी निवेशक और सटोरिये हुआ करते थे, जो उस दौर में उपलब्ध सिक्युरिटीज के बारे में अपना खुद का हिसाब-किताब करते थे। वे इनमें निजी तौर पर अपना खुद का पैसा दांव पर लगाते थे। उसी तरह के अलग-अलग साहसी निवेशक आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। वे इन अवसरों का खुद ही अच्छी तरह अध्ययन करते हैं और उनमें निवेश करने का सही समय समझने के लिए काफी दिमाग लगाते हैं। वे वित्तीय मामलों के जानकार होते हैं और जोखिम लेने की अपनी क्षमता से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं। जाहिर है, उनके लिए म्यूचुअल फंड्स बेहतर विकल्प नहीं होते।

संचालन में पारदर्शिता

म्यूचुअल फंड उन छोटे निवेशकों के लिए ‘सही है’ जिनके पास डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो को खुद ही तैयार करने का या तो समय नहीं है या उसमें उनकी दिलचस्पी नहीं है। वे इस कार्य को पेशेवर फंड प्रबंधकों के हवाले इस उम्मीद के साथ कर सकते हैं कि उनके निवेश का प्रबंधन उसी पारदर्शिता और संचालन के उच्च मानदंडों के साथ किया जाएगा, जिसके लिए आरंभ में म्यूचुअल फंड्स का निर्माण किया गया था। एक सर्विस के रूप में म्यूचुअल फंड निवेश का ऐसा साधन है, जो खुद इसका प्रबंधन करने में असमर्थ निवेशक के लिए सरलता, किफायत और बढ़िया डायवर्सिफिकेशन का आश्वासन देता है। निवेश के रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उनका गंतव्य एक ही है- शांतिपूर्वक लंबी अवधि के लिए पैसों के मूल्‍य को बढ़ाना।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स