देहरादून। (ओम प्रकाश उनियाल)। वयोवृद्ध पत्रकार पेंशन प्रकरण तीन-चार साल तक अधर में लटकाए रखने के बाद सरकार ने सुलझाने के बजाय नयी नियमावली बनाकर खारिज कर दिया। क्या यह पत्रकारों की घोर उपेक्षा नहीं? सरकार को यदि पेंशन स्वीकृत नहीं करनी थी तो इतने लंबे अरसे तक प्रकरण लटकाए रखने की क्या मजबूरी थी? सरकार ने पेंशन आवेदनों के साथ जो अभिलेख मांगे थे जिन पत्रकारों के अभिलेख पूरे पाए गए थे उनको झूठे आश्वासन देकर इतने लंबे समय तक क्यों बरगलाती रही?जब सरकार के पास कोई विकल्प नहीं रहा तो पुरानी वयोवृद्ध पत्रकार पेंशन नियमावली में संशोधन कर नयी नियमावली बना डाली। तमाम पेंशन के पात्रों के आवेदनों को खारिज कर दिया। वर्तमान मुख्यमंत्री को चाहिए कि पूर्व के पात्र आवेदनकर्ताओं को पेंशन जारी करे।