तारीख थी 16 दिसंबर 1971, सुबह तकरीबन सवा 10 बजे थे, आम लोगो के लिए सब कुछ रोजमर्रा जैसा ही था लेकिन युद्ध की सरजमीं पर कोई था जो अपनी जान की बाजी लगा रहा था, कोई था जो आग की लपटों के बीच बिना डरे बिना रुके दुश्मनों का सफाया कर रहा था कोई था जिसे बार-बार भारत की जमीन पर लौटने का आदेश दिया जा रहा था लेकिन वो योद्धा हार नहीं माना वो योद्धा ऐसा लड़ा कि अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास में अमर कर गया आखिर कौन था वो योद्धा जिसने अपने अदम्य साहस को दिखाते हुए पाकिस्तानी दुश्मनों के टैंको को तबाह कर दिया था आखिर कौन था वो योद्धा जिसके साहस का सम्मान में पाकिस्तानी फ़ौज ने भी किया। इस अदम्य साहस से जुड़े सवाल कई लेकिन जवाब केवल एक है सेकेंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेत्रपाल :-----