मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद से त्रिवेंद्र सिंह रावत जिम्मेदारी से दूर हो गए थे, लेकिन संगठन में पार्टी के भरोसे को कायम रखने में हो वह कामयाब हो गए।
सक्रिय राजनीति से तीन साल का वनवास खत्म होने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जीत के साथ वापसी की है। मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद से त्रिवेंद्र को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली थी। इस बार संगठन ने उन पर भरोसा जताया तो त्रिवेंद्र ने दिखा दिया कि मैदान में उनकी धमक कायम है।
मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद से त्रिवेंद्र सिंह रावत जिम्मेदारी से दूर हो गए थे, लेकिन संगठन में पार्टी के भरोसे को कायम रखने में हो वह कामयाब हो गए।सक्रिय राजनीति से तीन साल का वनवास खत्म होने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जीत के साथ वापसी की है। मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद से त्रिवेंद्र को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली थी। इस बार संगठन ने उन पर भरोसा जताया तो त्रिवेंद्र ने दिखा दिया कि मैदान में उनकी धमक कायम है। त्रिवेंद्र की इस जीत को उनके राजनीतिक कॅरियर में एक नई दिशा मिलने के तौर पर देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद से त्रिवेंद्र को एक राजनीतिक अवसर का इंतजार था। कुछ अवसरों पर संगठन में उन्हें अहम जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चाएं गरमाती रहीं, लेकिन हर बार त्रिवेंद्र समर्थकों को मायूस होना पड़ा। 2022 में अपनी पारंपरिक डोईवाला सीट से भी वह चुनाव नहीं लड़ पाए।
हालांकि, इस सीट पर पार्टी ने उन्हीं के पसंद के चेहरे बृजभूषण गैरोला को मैदान में उतारा था। त्रिवेंद्र के समर्थन से गैरोला चुनाव जीत गए थे। बावजूद इसके त्रिवेंद्र को कोई बड़ी जिम्मेदारी का इंतजार रहा। इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अपने सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का टिकट काटकर हरिद्वार लोस सीट पर जीत की जिम्मेदारी त्रिवेंद्र को सौंपी।त्रिवेंद्र ने भी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा। जीत के तौर पर नतीजा सामने है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि त्रिवेंद्र की इस जीत के कई मायने हैं। केंद्र में सरकार बनने की सूरत में त्रिवेंद्र समर्थक किसी बड़ी जिम्मेदारी की भी अपेक्षा कर रहे हैं।