सूर्य का आभार जताने के लिए लोग पुराने समय से ही सूर्य पूजा करते आ रहे हैं। वेदों में भी सूर्य को प्रमुख देवता कहा गया है। षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहते हैं। जो लोगों को संतान देती हैं और सभी संतानों की रक्षा करती हैं। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम छठ पर्व ही रखा गया है।
वर्ष में दो बार होता है यह पर्व
सूर्य षष्ठी व्रत साल में दो बार होता है। पहला चैत्र और दूसरा कार्तिक महीने में। इनमें कार्तिक का छठ पर्व बहुत खास है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिनों के व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इसे छठ व्रत कहा जाने लगा।
सभी पर्वों में विशेष महत्व है इसका
सूर्य को कृषि का आधार माना जाता है, क्योंकि सूर्य ही मौसम में परिवर्तन लाता है। सूर्य के कारण ही बादल जल बरसाने में सक्षम होता है। सूर्य अनाज को पकाता है। इसलिए सूर्य का आभार व्यक्त करने के लिए प्राचीन काल से लोग पूजा करते आ रहे हैं। वेदों में भी सूर्य को सबसे प्रमुख देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार ये घटना कार्तिक और चैत्र महीने की अमावस्या के छः दिन बाद आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण ही इसका नाम छठ पर्व रखा गया है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में है छठी देवी का जिक्र
ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक खास अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। पुराण केअनुसार, ये देवी सभी संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें लंबी उम्र देती हैं। इन्हीं को स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है।