होली, हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला विशेष त्योहार है, जिसे बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष पूरे देश में होली 8 मार्च (बुधवार) को मनाई जाएगी। कैलेंडर के सबसे बड़े त्योहारों में से एक होली (Holi) को रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। देश में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक अनेकता में एकता का रंग बिखरेनी वाली होली का नाम और रूप अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन भावना एक ही होती है। आज हम आपको होली किन-किन प्रकारों (Types of Holi) से मनाई जाती है, उनके कुछ रूपों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, तो पढ़िए ये पूरी खबर...
1- फूलों की होली (Flowers
Holi)
होली सप्ताह में एकादशी पर उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के
बांके बिहारी मंदिर में ताजे फूलों की पंखुड़ियों के साथ फूलों की होली खेली जाती
है। वृंदावन कृष्ण
शिष्यों द्वारा बड़े उत्साह के साथ सुगंध और फूलों से भरे माहौल में फूलों की होली
का प्राकृतिक दृश्य आपको एक अलग दुनिया में ले जाता है।
2- लड्डूमार होली
(Laddumar Holi)
लड्डूमार होली के भी मान से जानी जाने वाली लड्डुओं की होली
मथुरा के वृंदावन और श्री राधारानी के बरसाना में खेली जाती है। इस प्रकार के
होली खेलने में रंगों और गुलालों की जगह लोग एक-दूसरे पर लड्डुओं को फेंकते हुए
अनोखा होली खेलते हैं। अधिकतर ऐसी अनोखी होली उत्तर प्रदेश के ब्रज
क्षेत्र और राजस्थान के कई हिस्सों में देखने को मिलती है।
3- लट्ठमार होली (Lathmar
Holi)
उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन में उस युग की परंपरा का
पालन किया जाता है, जब भगवान श्रीकृष्ण
अपने दोस्तों संग राधा और उसके दोस्तों के साथ होली खेलने के लिए बरसाना जाते थे।
इनके द्वारा किए गए हंगामे से बौखलाकर गोपियां, कृष्ण और उनके साथियों
को मारने के लिए बांस की छड़ें उठाती थीं।
इसका उद्देश्य सिर्फ उन्हें अपने गांव से भाग जाने के लिए डराना होता था। आज भी
नंदगांव के पुरुष, महिलाओं के साथ
होली खेलने के लिए बरसाना आते हैं और उसी परंपरा के अंतर्गत लट्ठमार होली खेली जाती है।
4- भस्म वाली होली (Bhasm
Holi)
उत्तर प्रदेश के वाराणसी
(Varanasi) जिले में रंग और गुलाल के साथ श्मशान में चिता की भस्म से
भी होली खेली जाती है। जलती चिताओं के बीच होली का ये अद्भुत और अनोखा रंग पूरे विश्व
में सिर्फ काशी में ही देखने को मिलता है। हर साल रंगभरी एकादशी के दिन महादेव के
भक्त ये होली काशी के महाश्मशान हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाट पर खेलते हैं।
5- बैठकी होली (Baithak
Holi)
उत्तराखंड
(Uttarakhand) के अल्मोड़ा जिले की बैठकी होली को 150 वर्ष से भी अधिक
पुरानी बताई जाती है। यह होली पौष माह के पहले रविवार से शुरू होती है। अल्मोड़ा
में देर रात तक कलाकार, रंगकर्मी, होली गायक एवं
स्थानीय लोग बैठकी होली के रंग में रंगे रहते हैं। इस बैठकी होली की खासियत है कि
यह शास्त्रीय रागों पर गायी जाती है और इसमें जमने वाली महफिल देखने लायक होती है।
6- खड़ी होली (Khadi
Holi)
उत्तराखंड के कुमाऊं जिले में मनाई जाने वाली खड़ी होली का
अपना ही रंग है। सरोवर नगरी नैनीताल में मां नंदा देवी के मंदिर में होला-होली
गायन किया जाता है। होली के गीतों को गाते हुए होल्यारे पहाड़ में अपने रंग में
नजर आएंगे। यहां खड़े होकर बीच में ढोल और मंजीरे के साथ एक गोल घेरे में होली के
गीत गाये जाते हैं।
7- महिलाओं की होली
(Women’s Holi)
उत्तराखंड के कुमाऊं जिले में महिलाओं की होली का अपना ही
आकर्षण है, जिसमें स्वांग भी शामिल है। बैठकी होली में जहां
शास्त्रीय राग में होली के गीत सुनने को मिलते हैं तो वहीं, खड़ी होली में ढोल और मंजीरे के साथ गोल घेरे में अलग
अंदाज में खड़ी होली गायी जाती है। अगर आपको उत्तराखंड की होली देखनी है तो इस बार
आप अल्मोड़ा की महिलाओं की होली को देख सकते हैं।
8- थारुओं की होली
(Tharu Tribe Holi)
उत्तराखंड में ऊधमसिंहनगर जिले के खटीमा में अपने आप में
अनूठी थारू जनजाति (Tharu
Tribe) की होली दो
हिस्सों में खेली जाती है। थारू समाज के लोग यहां जिंदा होली (Jinda Holi) और मरी होली (Mari Holi) खेलते हैं।
जिंदा होली
जिंदा होली को खिचड़ी होली भी कहते हैं। थारू समाज की खड़ी
होली में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी घर-घर जाकर होली के गीत गाती हैं और साथ में नाचती हैं।
यह होली होलिका दहन तक मनाई जाती है।
मरी होली
थारू समाज द्वारा मरी होली होलिका हदन के बाद मनाई जाती है।
मान्यता है जिन गांवों में आपदा या बीमारियों से मौत हो जाती थी, उस गांव के लोग होली का त्योहार होलिका दहन के बाद मनाना
शुरू करते हैं। पूर्वजों के दौर से चली आ रही इस परंपरा को आज भी थारू समाज के लोग
वैसे ही मनाते आ रहे हैं।
9- भारत-नेपाल सीमा की अनूठी होली
भारत-नेपाल सीमा से सटे बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती, और लखीमपुर खीरी के
दर्जनों गांवों में थारू जनजातियों की बहुलता है। इस समाज में होली बसंत पंचमी से
ही शुरू होती है और होली के दिन तक चलता रहती है। थारुओं की मस्ती होली दहन की
पूर्व संध्या पर देखने वाली रहती है। थारू रंग-बिरंगे परिधान में अपने-अपने गांवों
में परंपरागत तरीके से होली का त्योहार मनाते हैं। इनमें महिलाएं भी पीछे नहीं
रहती है। गाते-बजाते थारू युवा गांव के तीन चक्कर लगाकर गांव के मुखिया के दरवाजे
पर पहुंचकर पहले सरसों भूनकर बनाए गए विशेष लेप (बुकवा) मुखिया को लगाते हैं। मुखिया
उन्हें खाने-पीने के सामान के साथ रुपये भी देते हैं। इसके बाद मस्त टोली गांव के
दूसरे ओर चल पड़ती है और रास्ते में जो भी मिलता है, उसे दक्षिणा
देता है। गुरु के दरबार में होली का समापन होता है।
10- माखन चोर होली
(Rang Panchami Holi)
महाराष्ट्र (Maharashtra)
राज्य में मनाई
जाने वाली रंगपंचमी या माखन चोर होली भी अपने आप में बेहद खास और अनूठी है। फाल्गुन
पूर्णिमा से पहले पांचवें दिन मनाया जाने
वाला यह आनंद अंतहीन लगता है। भगवान श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ आस-पड़ोस से
माखन चुराते थे और इनसे माखन सुरक्षित रखने के लिए महिलाएं इसे घरों के सबसे ऊंचे
कक्षों में छिपा देती थीं। उस समय से चली आ रही इस परंपरा का पालन मुंबई और कृष्ण
लीला के नाम पर महाराष्ट्र के कई शहरों में किया जाता है। इन दृश्यों को जीवंत रखने
के लिए हर साल पंडालों में बर्तन तोड़े जाते हैं। मटकों को बड़ी ऊंचाई पर लटकाया
जाता है और फिर लड़के बड़ी संख्या में पिरामिड बनाते हैं। प्रशिक्षित लड़के उन पर
चढ़ जाते हैं, जबकि महिलाएं उन्हें पानी और रंग छिड़ककर मटके
तक पहुंचने से रोकती हैं। इस अंतहीन लड़ाई के नजारे बड़े शहरों में घिसी-पिटी जिंदगी
में उत्साह और आनंद लाते हैं।
11- रॉयल होली (Royal Holi)
राजस्थान (Rajasthan) के जयपुर में सिटी
पैलेस के राजघराने हर साल अपने कॉन्डोमिनियम में एक भव्य समारोह का आयोजन करते हैं।
यह विदेशी पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच होली का उत्साह बढ़ाता है। जयपुर में हर साल
इस त्यौहार के दौरान भारी भीड़ उमड़ती है, क्योंकि यह वह
समय होता है जब लोग शाही परिवार को रंगों से सराबोर करते हैं। होली का शानदार भव्य
उत्सव जयपुर में महोत्सव आगंतुकों के दिलों में अमिट यादें उकेरता है।
12- बसंत उत्सव (Basant
Utsav)
श्री चैतन्य महाप्रभु की जयंती के रूप में चिह्नित दिन पर पश्चिम बंगाल (West Bengal) में होली का विशेष महत्व है। विद्वानों और लेखकों
की यह भूमि शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में रंगों के त्योहार को गीत, नृत्य और भजनों
के साथ मनाती है। कोलकाता जिसकी स्थापना महान रवींद्र नाथ टैगोर ने की थी। अगर आप
उग्रता से डरते हैं तो पश्चिम बंगाल में होली मनाने के एक उदार और शालीन तरीके के लिए यह एक
विकल्प हो सकता है।
13- होला मोहल्ला (Hola
Mohalla)
सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा चिन्हित होला मोहल्ला एक
ऐसा त्यौहार है, जो सामान्य से बाहर है और होली के एक दिन बाद
मनाया जाता है। पंजाब (Punjab) के आनंदपुर साहिब
में होला मोहल्ला सबसे बड़ा त्योहार है। सिख पुरुषों के साहस और वीरता को
श्रद्धांजलि देते हुए इसे एक ऐसे आयोजन के रूप में मनाया जाता है, जिसमें शाम को रंगों से खेलने की सामान्य परंपरा के बाद
मार्शल आर्ट, मॉक फाइट और स्टंट का
प्रदर्शन किया जाता है। गुरुद्वारे में पूरे दिन लंगर (भोजन) के लिए एक विशाल
व्यवस्था की जाती है। एक दिन की मौज-मस्ती और मस्ती का आयोजन चरण गंगा के पार एक
कांटे पर खुले मैदान में किया जाता है।
14- बिहार की होली (Bihar Holi)
बिहार (Bihar) राज्य में होली
अच्छी फसल और भूमि की उर्वरता को चिन्हित करने के अलावा होलिका पर प्रह्लाद की
पौराणिक कथा के महत्व के लिए मनाया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर गाय के गोबर के
उपले, ताजा फसल से अनाज
और होलिका के पेड़ की लकड़ी डालकर अलाव जलाया जाता है। बिहार में होली को नए साल
की शुरुआत के रूप में चिह्नित किया जाता है, इसलिए लोग अपने
जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि लाने के लिए अपने घरों को साफ करते हैं। रंग
बिखेरने के अलावा अंदर लोग बिहार मिट्टी का उपयोग भी करते हैं। लोग इस त्योहार के दौरान मूड को मस्ताने
के लिए नशीले भांग का सेवन करते हैं। वे गाते हैं, नाचते-हंसते हैं और त्योहार की सच्ची भावना का आनंद लेते हैं।
15- कामन पंडिगई (Kaman
Pandigai)
तमिलनाडु (Tamilnadu) राज्य में होली
का महत्व अलग है, क्योंकि यह माना
जाता है कि यह इस शुभ दिन पर था कि उनके श्रद्धेय भगवान कामदेव (प्रेम के देवता) को भगवान शिव ने वापस जीवन में लाया था।
रंग लगाने की सामान्य परंपरा के विपरीत यहां लोग इस विश्वास के साथ कामदेव को चंदन
चढ़ाते हैं कि इससे उनका दर्द कम होगा। गीत गाए जाते हैं, जो कामदेव की
पत्नी रति के दु:ख को दर्शाते हैं।
16- मंजुल कुली (Manjul
Kuli)
केरल (Kerala) राज्य में होली
को ‘मंजुल कुली’ के नाम से जाना
जाता है। लोग यहां पहले दिन गोसरीपुरम थिरुमा के कोंकणी मंदिर जाते हैं और रंगों को पूरी
तरह से छोड़कर पानी व हल्दी से होली खेलते हैं। रंगों का त्योहार पारंपरिक लोक गीत
गाकर मनाया जाता है, जो वास्तव में
सुंदर और शांत हैं। होली खेलने का यह सूक्ष्म तरीका अपने आप में अनूठा है।
17- शिगमो (Shigmo)
गोवा (Goa) के पंजिम में ‘शिगमो’ के नाम से जानी
जाने वाली होली को सड़कों पर एक विशाल जुलूस के साथ मनाया जाता है। इनमें नृत्य
मंडलियों द्वारा प्रदर्शन और कलाकारों द्वारा लघु नाटकों में पौराणिक कथाओं का
सांस्कृतिक चित्रण शामिल है। गोवा के लोग इस जीवंत उत्सव में आकर्षण जोड़ने के लिए
अपनी नावों को पौराणिक विषयों से सजाते हैं। गोवा में हर त्यौहार कार्निवाल होता
है।
18- योसांग (Yosang)
मणिपुर (Manipur) राज्य में होली
‘योसांग’ नाम से जानी
जाती है। यह पांच दिवसीय उत्सव है और भगवान पाखंगबा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के
साथ शुरू होता है। सूरज ढलने के बाद लोग झोपड़ी जलाने के लिए इकट्ठा होते हैं और
उसके बाद गांव के बच्चे चंदा लेने के लिए पड़ोस में जाते हैं। दूसरे और तीसरे दिन, स्थानीय बैंड
मंदिरों में प्रदर्शन करते हैं, जबकि लड़कियां
दान मांगती हैं। अंतिम दो दिन वे हैं, जब वे रंगों और
पानी से खेलते हैं और लोगों के दिलों में रंगीन छाप छोड़ जाते हैं।
19- अंगारों की होली (Coals Holi)
राजस्थान के उदयपुर (Udaipur) जिले के बलीचा
नाम के एक गांव में अंगारों की होली मनाई जाती है। यह आदिवासी समुदाय का गांव हैं, जहां आदिवासी
समाज होलिका दहन के दूसरे दिन सुबह ऐसी होली खेलते हैं। इस दौरान जलते हुए अंगारों पर दौड़ते हुए प्रदर्शन करके
अपनी वीरता और साहस का परिचय देते हैं। आज भी होली के पावन अवसर पर अंगारों पर चलकर
और नाच-गाना के साथ इस तरह की होली खेलते हैं।
20- पत्थरों वाली होली (Stones Holi)
राजस्थान के बाड़मेर (Barmer) और जैसलमेर (Jaisalmer) में छोटे-छोटे पत्थरों से एक-दूसरे पर मारते हुए
होली का पर्व मनाते हैं। होली के दिन कई टोली बनाकर संगीत और ढोल नगाड़ों के साथ एक
जगह इकट्ठा होकर एक-दूसरे पर छोटे-छोटे कंकड़, पत्थर फेंकना
शुरू कर देते हैं, जिससे कि अगला
व्यक्ति बचने के लिए ढाल रूपी पगड़ी पहनकर या भागकर बचाव करते हैं और इसका भरपूर
आनंद लेते हैं।
21- उपलों के राख की होली (Cow Dung Cakes Holi)
राजस्थान के ही डूंगरपुर (Dungarpur) क्षेत्र में
ईंधन के रूप में प्रयोग किये जाने वाले गोबर से बने उपले जिसे ‘कंडा’ भी कहते हैं को
जलाकर, उसकी राख को एक-दूसरे पर डालते हुए होली का त्योहार
मनाते हैं। इस दौरान रंगों की जगह राख का प्रयोग किया जाता है।