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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 28 Apr 2022 6:49 pm IST


ढाई दशक में गोला और कोसी ने ले ली 23 जानों की बलि


सोना उगल रही कुमाऊं की गौला और कोसी नदियों में खनन को लेकर वर्चस्व की लड़ाई दशकों पुरानी है। खनन को लेकर सबसे ज्यादा हत्याएं हल्द्वानी और किच्छा में र्हुइं हैं। पिछले ढाई दशक में 23 लोग खनन की रंजिश में जान गंवा चुके हैं। काशीपुर, रामनगर और बाजपुर में भी खनन को लेकर गोलीबारी की घटनाएं आम हैं।
खनन के कारोबार में वर्चस्व को लेकर संघर्ष का केंद्र हल्द्वानी की गौला नदी रही। जनवरी 1999 में काठगोदाम के शीशमहल निवासी पवन जोशी और उसके भाई विनीत जोशी की हत्या कर दी गई। तब इस दोहरे हत्याकांड में रमेश बंबइया गैंग का नाम सामने आया था। 11 दिसंबर 1999 को गौला नदी में पांच मजदूरों समेत आठ लोगों को खनन की रंजिश में जान से हाथ धोना पड़ा था। मृतकों में जुनैद आलम, असलम, ईशरत अली, मोहम्मद इस्लाम, खलील आदि शामिल थे। इस सामूहिक हत्याकांड में बनभूलपुरा निवासी निसार खान उर्फ गुड्डू, गुलजार खान उर्फ पप्पू और भूरा आदि का नाम प्रकाश में आया था। 9 मई 2002 को नैनीताल के जिला सत्र न्यायाधीश ने आरोपियों को कसूरवार ठहराते हुए आजीवन कारावास और दस हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ आरोपी अपील में चले गए। बाद में निसार खान और उसके भाइयों की भी हत्या हो गई। 28 सितंबर, 2001 को किच्छा के शांतिपुरी नंबर दो में खनन के विवाद में हरीश रावत की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस घटना में योगेंद्र चौहान भी घायल हुआ था। दो माह बाद 28 दिसंबर को मोहन सिंह व नवीन तिवारी की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई। इसी रंजिश में एक अक्तूबर 2003 को योगेंद्र सिंह चौहान को भी खनन कारोबारियों ने गोलियों से भून दिया। 2009 में किच्छा के ही रोहित तिवारी को मार दिया गया, जबकि 13 दिसंबर 2009 को ही शार्प शूटर प्रताप बिष्ट को सरेआम गोलियों से भून दिया गया। दो सितंबर 2018 को रामनगर के बीडीसी सदस्य और खनन कारोबारी वीरेंद्र सिंह मनराल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। 14 अगस्त 2020 को रामनगर पीरुमदारा के ग्राम लोकमानपुर निवासी अमनदीप सिंह चीमा की जान चली गई। 26 अप्रैल की रात बाजपुर के ग्राम पिपलिया में खनन को लेकर हुए खूनी संघर्ष में कुलवंत की मौत हो गई, जबकि तीन अन्य घायल हो गए।