Read in App

DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 29 Sep 2022 8:00 am IST


भगवान श्री राम से जुड़ी है नवरात्रि पर्व की एक विशेष कथा


26 सितम्बर 2022 से शक्ति के महापर्व नवरात्रि का शुभारंभ हो चुका है। इस बीच मंदिरों में मां भगवती के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्त उमड़ रहे हैं। हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण पर्वों से एक नवरात्रि पर्व का समापन विजयदशमी पर्व के दिन 5 अक्टूबर को होगा। मान्यता है कि नवरात्रि पर्व में मां आदिशक्ति के नौ सिद्ध स्वरूपों की आराधना करने से भक्तों के सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं और उन्हें मनोवांछित इच्छापूर्ति के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में भी कई ऐसी कथाओं का वर्णन मिलता है जो नवरात्रि पर्व के महत्व को विस्तार से दर्शाता है। बता दें कि नवरात्रि में उपवास रखने की प्रथा रामायण काल से भी पहले से चलन में है। देवी भागवत पुराण के अनुसार भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले मां दुर्गा का नौ दिन उपवास रखा था। यह उपवास इसलिए विशेष था क्योंकि मां दुर्गा ने स्वयं प्रकट होकर प्रभु श्री राम को विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान किया था। आइए जानते हैं यह खास कथा।

नारद मुनि ने दिया भगवान श्री राम को उपदेश
मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा को समर्पित व्रत रखने से व्यक्ति किसी भी दुर्गम परिस्थिति में विजय प्राप्त कर सकता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार जब भगवान श्री राम माता सीता के हरण से टूट गए थे तब देवर्षि नारद जी ने उन्हें रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा के इस विशेष अनुष्ठान का सुझाव दिया। प्रभु राम ने इस सुझाव का पालन किया और अनुष्ठान प्रारम्भ किया। इसमें उनके आचार्य स्वयं देवर्षि नारद थे। उन्होंने श्री राम को अनुष्ठान की सम्पूर्ण विधि से अवगत कराया।

नौ दिनों तक चला अनुष्ठान
नारद मुनि के दिशा-निर्देश पर प्रभु श्री राम अनुष्ठान को पूरा कर रहे थे। उन्होंने प्रसिद्ध किष्किन्धा पर्वत पर भगवान दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित किया और अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी के साथ इस अनुष्ठान का पालन किया। नवरात्रि अर्थात नौ रात्रि तक उपवास रखने के बाद माता भगवती प्रसन्न हुईं और अष्टमी तिथि की रात्रि में उन्होंने दोनों भाइयों को दर्शन दिया। साथ ही माता ने श्री राम को विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान किया। इसके बाद दशमी तिथि को जब श्री राम और रावण में युद्ध हुआ तब अधर्म पर धर्म की जीत को आज भी विजयादशमी के रूप में जाना जाता है।