मद्रास हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग यानि एनएमसी को उसकी नई फीस नीति पर दोबारा विचार करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट का कहना है कि, इस साल तीन फरवरी को तैयार की गई फीस संरचना के हिसाब से छात्रों के दो अलग-अलग वर्गों की फीस में भारी अंतर होगा, और इससे योग्यता पर असर पड़ेगा।
मुख्य न्यायाधीश एमएन भंडारी और जस्टिस एन माला की पीठ ने एजुकेशन प्रमोशन सोसाइटी फॉर इंडिया नाम की संस्था और सात अन्य निजी स्व वित्तपोषित चिकित्सा कॉलेजों समेत डीम्ड यूनिवर्सिटियों की जनहित याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह निर्देश दिया है।
बताते चलें कि, याचिकाकर्ताओं ने 2019 के राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम की धारा 10(1)(आई) को सांविधानिक प्रावधानों के खिलाफ, गैर-कानूनी और अमान्य घोषित करने की मांग करते हुए एनएमसी के तीन फरवरी के ज्ञापन को निरस्त करने का मांग की थी।
ज्ञापन में निजी चिकित्सा कॉलेजों, डीम्ड विश्वविद्यालयों में 50 फीसदी सीटों के लिए राज्यों औक केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी चिकित्सा कॉलेजों के समान फीस रखने और शेष 50 फीसदी सीटों के लिए संस्थान की लागत वसूली के हिसाब से फीस और अन्य शुल्क तय करना था।