उत्तराखंड रोडवेज को अस्तित्व बचाने के लिए जल्द संभलना होगा। रोडवेज के बस बेड़े में तीन साल के भीतर दो सौ बसें कम हो गई हैं। वहीं, कोरोनाकाल में घाटा 250 करोड़ से बढ़कर 520 करोड़ रुपये पहुंच गया है। हालत इतने खराब हैं कि रोडवेज पाई-पाई जुटाकर कर्मचारियों के वेतन का इंतजाम कर रहा है। ऐसे में रोडवेज को बचाने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है।
कोरोना काल में दोगुना हुआ घाटा : गठन के बाद सिर्फ वर्ष 2007 ऐसा है जब रोडवेज को घाटा नहीं हुआ। बाकी सभी साल रोडवेज करोड़ों के घाटे में रहा। मार्च 2020 तक घाटा 250 करोड़ रुपये था, लेकिन कोरोनाकाल में यात्रियों की संख्या घटने से घाटा बहुत तेजी से बढ़ा। वर्तमान में घाटा 520 करोड़ तक पहुंच गया है। अब स्थिति यह है कि रोडवेज कर्मचारियों को भी समय पर वेतन तक नहीं दे पा रहा है।
आधी से भी कम हो गई नियमित कर्मचारियों की संख्या : जब उत्तराखंड रोडवेज बना था, तब यूपी रोडवेज से 7100 कर्मचारी मिले थे। इसमें 300 संविदा कर्मचारी थे, बाकी सभी नियमित थे, लेकिन वर्तमान में रोडवेज में करीब 2700 नियमित कर्मचारी हैं। 3500 के करीब संविदा और विशेष श्रेणी के कर्मचारी हैं। नियत कर्मचारियों की संख्या घट गई है।