दीपावली के 8 दिन बाद यानी कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा के साथ व्रत किया जाता है। इसे आंवला नवमी कहते हैं। ऐसा करने से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है। इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। इस बार ये व्रत 2 नवंबर, बुधवार के दिन किया जाएगा। मान्यता है कि आंवला नवमी स्वयं सिद्ध मुहूर्त भी है। इस दिन दान, जप व तप सभी अक्षय होकर मिलते हैं अर्थात इनका कभी क्षय नहीं होता हैं। भविष्य, स्कंद, पद्म और विष्णु पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। पूरे दिन व्रत रखा जाता है। पूजा के बाद इस पेड़ की छाया में बैठकर खाना खाया जाता है। ऐसा करने से हर तरह के पाप और बीमारियां दूर होती हैं।
विष्णु का रूप हैं आंवले का पेड़
पद्म पुराण के मुताबिक भगवान शिव ने कार्तिकेय को कहा है कि आंवले का पेड़ साक्षात विष्णु ही है। ये विष्णु प्रिय है और इसका ध्यान करने से ही गोदान के बराबर फल मिलता है। आंवले के पेड़ के नीचे विष्णु के दामोदर रूप की पूजा की जाती है। संतान प्राप्ति, सुख, समृद्धि और कई जन्मों के पुण्य खत्म न हो इस कामना से अक्षय नवमी की पूजा और व्रत किया जाता है। इस दिन लोग परिवार सहित आंवला के पेड़ के नीचे भोजन तैयार कर ग्रहण करते हैं। इसके बाद ब्राह्मणों को द्रव्य, अन्न एवं अन्य वस्तुओं का दान करते हैं।
आंवला नवमी से जुड़ी मान्यताएं
- इस दिन महर्षि च्यवन ने आंवला खाया था। जिससे उन्हें फिर से यौवन मिला। इसलिए इस दिन आंवला खाना चाहिए।
- कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की परिक्रमा करने से बीमारियों और पापों से छुटकारा मिलता है।
- इस दिन भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में रहते हैं। इसलिए इस पेड़ की पूजा से समृद्धि बढ़ती है और दरिद्रता नहीं आती है।
- अक्षय नवमी पर लक्ष्मीजी ने पृथ्वी पर भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा आंवले के रूप में की थी और इसी पेड़ के नीचे बैठकर भोजन किया था।
- मान्यता ये भी है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने कंस वध से पहले तीन जंगलों की परिक्रमा की थी। इस वजह से अक्षय नवमी पर लाखों भक्त मथुरा-वृदांवन की परिक्रमा भी करते हैं।