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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 26 Aug 2021 4:52 pm IST


आधुनिकता की दौड़ ने छीनी भीमल की डोरी


पर्वतीय क्षेत्रों में कभी भीमल के पेड़ की टहनियों के रेसे से बनने वाली रस्सियां (डोरिया)पुराने मिट्टी के बने घरों, गोशालाओं में बनी खूंटियों में खूब लटकती दिखती तो यह गांवों के आबाद होने का संदेश भी देती थी। महिलाएं चारा पत्ती लाना हो या फिर गोशालाओं में मवेशियों को बांधना, भीमल के रेशे से बनी रस्सियों का ही उपयोग करते थे। वक्त बदला नजरिया बदला। हश्र यह हुआ कि आधुनिकता की चकाचौंध में बाजारों में मिलने वाली प्लास्टिक की डोरियों के बीच प्राकृतिक भीमल की मजबूत डोरी गायब से होने लगी है।