बाबा भोले के धाम तक पहुंचने के लिए पैदल मार्ग की कठिनाइयों को राज्य सरकार केंद्र के साथ मिलकर आसान करने जा रही है. हालांकि, केदारनाथ आपदा 2013 के बाद एक नए वैकल्पिक रास्ते पर केदारनाथ की यात्रा को संचालित किया जा रहा है, लेकिन हकीकत में इस रास्ते का लंबे समय तक प्रयोग किसी खतरे से कम नहीं है. ऐसा 2013 की जल प्रलय के बाद खुद वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में बताया था.यही कारण है कि शायद राज्य और केंद्र सरकार ने इसे गंभीरता से लिया और पैदल मार्ग को सुरक्षित करने से जुड़ा प्रस्ताव स्टेट वाइल्ड लाइफ के साथ ही नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड में भी लाया गया है. वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व वैज्ञानिक बीपी डोभाल ने बताया कि केदारनाथ धाम की चोटियों पर कोई स्थाई ग्लेशियर नहीं हैं. केदारनाथ मंदिर ऊपर स्थित है चौराबाड़ी ग्लेशियर. इसके साथ ही यहां एक और भी ग्लेशियर है. उन्होंने बताया कि अभी तक इन ग्लेशियर में आठ एवलॉन्च उठे हैं और ये हमेशा एक्टिव रहते हैं.