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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 31 Mar 2022 4:09 pm IST


चैत्र नवरात्र को लेकर सजने लगा है महाभारत कालीन ब्यानधूरा धाम


चैत्र नवरात्र आगामी दो अप्रैल से शुरू हो रहे हैं। इसके लिए जिले के उत्तरी छोर पर स्थित प्राचीन ब्यानधूरा धाम सजने लगा है। मान्यता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने ब्यानधूरा क्षेत्र को अपनी शरणस्थली बनाया था। इसके कई प्रमाण आज भी मिलते रहते हैं। कुमाऊं मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों के अधिकतर मंदिरों में मनोकामना पूरी होने के लिए छत्र, ध्वजा, पताका, श्रीफल, घंटी, फल-फूल आदि चढ़ाए जाते हैं लेकिन मनौती पूरी होने पर ब्यानधुरा में धनुष-बाण चढ़ाने और पूजने की अनूठी परंपरा है।चंपावत, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर जिले की सीमा से लगे सेनापानी जंगल में महाभारत काल में पांडव कूर्मांचल के इस हिस्से में अज्ञातवास के दौरान रहे और अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष यहीं छिपाया था। कहा जाता है कि गांडीव धनुष मंदिर में मौजूद है और ऐड़ी देव के अवतार ही उसे उठा पाते हैं। मुगल और हूणकाल में यह क्षेत्र आक्रमणकारियों के निशाने पर रहा लेकिन ब्यानधुरा की चमत्कारिक शक्ति के कारण आक्रमणकारी इस चोटी से आगे पहाड़ की ओर नहीं बढ़ सके। इतिहासकार डॉ. प्रशांत जोशी के अनुसार ब्यानधुरा के सेनापानी क्षेत्र में आज भी मानव बस्तियां, बिरखमों, मूर्तियों के अवशेष देखे जा सकते हैं। यह क्षेत्र हमेशा से इतिहासकारों के लिए शोध का विषय रहा है। मंदिर के पुजारी शंकर दत्त जोशी के अनुसार उनके पूर्वजों को स्वप्न में ब्यानधूरा चोटी पर धनुष-बाण पूजने का आदेश मिला। अब लोग देव बाधाओं के निवारण के लिए यहां जुटते हैं। मान्यता है कि इस स्थल पर जलते दीपक के साथ रात्रि जागरण करने से वरदान मिलता है। विशेषकर निसंतान दंपतियों की मनोकामना पूरी होने पर उनकी सूनी गोद भर जाती है। मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त यहां धनुष-बाण चढ़ाने आते हैं।