माना जाता है कि अपनी भावनाओं को मातृभाषा में व्यक्त करना अधिक प्रभावी होता है। मातृभाषा हम जन्म से सीखते हैं, जो हमारे आसपास की दुनिया को समझने-बूझने में काफी मददगार होती है। यह अब एक सर्व-स्वीकार्य तथ्य है कि जो अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं, आमतौर पर वे शैक्षणिक रूप से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए यूनेस्को प्रतिवर्ष 21 फरवरी को ‘विश्व मातृभाषा दिवस’ मनाता है। यूनेस्को ने पहली बार इस दिन की घोषणा 17 नवंबर, 1999 को की थी। और इसे पहली बार 21 फरवरी, 2000 से मनाना आरंभ किया गया। आगे चलकर 2002 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे आधिकारिक तौर पर मान्यता दी। अब इस दिवस को बहुभाषावाद और मातृभाषा के मुद्दे पर जागृति निर्माण के अवसर के रूप में देखा जाता है।
संयुक्त राष्ट्र की विश्व की भाषाओं पर एक रिपोर्ट के अनुसार, अमूमन हर दो सप्ताह में हमारी एक भाषा लुप्त हो जाती है। यह हम सबके लिए एक चिंता का सबब है, क्योंकि इससे संस्कृतियों और परंपराओं के हमेशा के लिए खो जाने का खतरा बन जाता है। बदकिस्मती से दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी को उस भाषा में शिक्षा की बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है, जिसे वे समझते हैं। यह समस्या दरअसल मातृभाषा के प्रश्न से जुड़ी है, जिससे खासकर गरीब बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक असर पड़ता है।
‘विश्व मातृभाषा दिवस’ हर साल एक नई थीम पर मनाया जाता है। इस साल विषय है- ‘बहुभाषी शिक्षा अंतर-पीढ़ीगत शिक्षा का एक स्तंभ।’ यह पूरे विश्व में बहुभाषी शिक्षा की अहमियत और इसकी जरूरतों पर बल देता है। ‘विश्व मातृभाषा दिवस’ संयुक्त राष्ट्र के सतत-विकास के लक्ष्य 4.6 का समर्थन करता है, जिसका मकसद यह पक्का करना है कि दुनिया का हर युवा और वयस्क बुनियादी साक्षरता और अंक ज्ञान का कौशल अर्जित कर सके।
भारत में प्राचीन और आधुनिक भाषाओं की विविधता सहज देखी जा सकती है। यह देश की राष्ट्रीय पहचान का एक अहम हिस्सा है। भारत सरकार भारतीय भाषाओं में शिक्षण पर स्कूलों और उच्च शिक्षा में विशेष ध्यान दे रही है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा देकर और युवाओं के बीच भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देते हुए एक विकासमूलक शिक्षा प्रणाली बनाना है। इसके तहत कम से कम ग्रेड-5 के लिए शिक्षा के माध्यम के रूप में बच्चे की घरेलू भाषा या मातृभाषा का उपयोग करने के महत्व पर जोर डाला गया है। सरकार भारत की लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए भी प्रतिबद्ध है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स