हर कोई जानता है कि कसरत करना शरीर के लिए अच्छा होता है। बार-बार कहा जाता है कि इससे शरीर की मांसपेशियां और जोड़ मजबूत रहते हैं, रोगों से लड़ने में मदद मिलती है। लेकिन हम यह नहीं जानते कि शारीरिक गतिविधि दरअसल मनुष्य के जीव-विज्ञान से जुड़ी हुई है। एक नई बायोमेडिकल रिसर्च में यह बात सामने आई है।
हार्वर्ड के रिसर्चरों की टीम ने अपने अध्ययन में इस बात के प्रमाण जुटाए हैं कि मनुष्य अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में तुलनात्मक दृष्टि से ज्यादा सक्रिय रहने के लिए विकसित हुआ है। उनका कहना है कि जीवन के उत्तरार्द्ध में शारीरिक गतिविधि ऊर्जा को स्वास्थ्य पर असर डालने वाली प्रक्रियाओं से हटा कर शरीर की उन प्रक्रियाओं की तरफ मोड़ती है जो स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं। उनकी थियरी कहती है कि मनुष्य का विकास वृद्धावस्था में शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के हिसाब से हुआ है। ऐसा करने के लिए वह ऊर्जा को उन फिजियोलॉजिकल प्रक्रियाओं के लिए आवंटित करता है जो शरीर में उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे होने वाली गिरावट को धीमा करती हैं। इससे ह्रदय रोग, टाइप 2 डायबिटीज और कुछ प्रकार के कैंसर जैसे असाध्य रोगों से सुरक्षा होती है।
हार्वर्ड के ईवॉल्यूशनरी बायलॉजिस्ट और नए अध्ययन के प्रमुख लेखक डेनियल लीबरमैन ने कहा कि लोगों में यह आम धारणा है कि जैसे-जैसे हम बूढ़े होते हैं, हमारा धीमा पड़ना और कम काम करना सामान्य है। लोग सोचते हैं कि अब आराम का वक्त है, रिटायर हो जाओ। लीबरमैन ने कहा कि हमारा संदेश ठीक इसके विपरीत है। हमारा कहना है कि वृद्ध होने पर शारीरिक रूप से सक्रिय रहना अत्यंत महत्वपूर्ण है। रिसर्च टीम का खयाल है कि उनके रिसर्च पेपर में पहली बार यह समझाने की कोशिश की गई है कि वृद्ध होने के क्रम में शारीरिक गतिविधि के अभाव से रोगों का रिस्क क्यों बढ़ता है और दीर्घ जीवन में क्यों कमी आती है।
रिसर्चरों ने अपने अध्ययन के लिए चिंपैंजियों को चुना जो मनुष्य के निकटवर्ती रिश्तेदार हैं। ये वानर जंगल में 35 से 40 साल तक ही जिंदा रह पाते हैं। मनुष्य की तुलना में इनकी शारीरिक गतिविधि बहुत कम होती है। इससे पता चलता है कि मनुष्य के विकास क्रम में लंबी उम्र के साथ-साथ शारीरिक तौर पर अधिक सक्रिय रहने के हिसाब से परिवर्तन हुआ है। लीबरमैन ने तंजानिया में चिंपैंजियों का अध्ययन किया जो दिन में अधिकांश समय बैठे रहते हैं। इस अध्ययन के बाद उन्होंने कहा कि हम बुनियादी रूप से ‘आलसी टट्टुओं’ से विकसित हुए हैं।
रिसर्चरों ने दो खास चीजों का अध्ययन किया, जिनसे उम्र भर चलने वाली शारीरिक गतिविधि स्वास्थ्य में सुधार के लिए ऊर्जा को नए सिरे से आवंटित करती है। पहली का संबंध फालतू ऊर्जा को हानिकारक प्रक्रियाओं से हटाने से है। इन प्रक्रियाओं में अत्यधिक वसा का जमाव शामिल है। टीम ने इस बात की भी पहचान की कि शारीरिक गतिविधि किस प्रकार मरम्मत और रखरखाव की प्रक्रियाओं के लिए ऊर्जा आवंटित करती है।
इस अध्ययन का मुख्य निष्कर्ष यह है कि हमारा विकास जीवन भर सक्रिय रहने की दृष्टि से हुआ है। इसलिए हमारे शरीर को स्वस्थ रहते हुए बुढ़ापे के दौर से गुजरने के लिए शारीरिक गतिविधि की आवश्यकता पड़ती है। अतीत में अस्तित्व के लिए रोजमर्रा की शारीरिक गतिविधि की आवश्यकता थी। आज हमें स्वास्थ्य और फिटनेस के लिए व्यायाम को चुनना पड़ेगा। रिसर्च टीम को उम्मीद है कि उनके अध्ययन के बाद व्यायाम के संदेश को नजरंदाज करना मुश्किल होगा। आज दुनिया भर में शारीरिक गतिविधि के स्तर में कमी आ रही है क्योंकि मशीन और तकनीक ने मानव श्रम का स्थान ले लिया है। रिसर्चरों की सलाह है, ‘आप अपनी कुर्सी से उठ जाओ और कुछ कसरत करो’।
लीबरमैन ने कहा कि एक अच्छी बात यह है कि हमें शिकार करने वाले पूर्वजों की भांति सक्रिय रहने की आवश्यकता नहीं है। दिन में 10 या 20 मिनट की शारीरिक गतिविधि भी शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त है। व्यायाम मस्तिष्क के लिए भी अच्छा है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहने वाले वृद्धजनों के मस्तिष्क में स्नायु तंतुओं के कनेक्शन को मजबूत करने वाले प्रोटीनों की मात्रा ज्यादा होती है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स