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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 18 May 2023 11:35 am IST


उद्धव और शिंदे की लड़ाई जारी रहेगी


महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला पक्ष-विपक्ष दोनों को खुश कर गया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट इसलिए प्रसन्न है क्योंकि उसकी सरकार बच गई। उद्धव ठाकरे गुट इसलिए खुश है क्योंकि उसे कानूनी लड़ाई का एक और पलीता मिल गया। शिवसेना किसकी, इस पर लड़ाई जारी रहेगी। अब गेंद स्पीकर और चुनाव आयोग के पाले में है। इस संतुलित फैसले से पक्ष-विपक्ष सबके लिए ‘विन-विन’ सिचुएशन बनी है। अदालत ने राज्यपाल, विधानसभा स्पीकर और चुनाव आयोग तीनों के संवैधानिक अधिकारों को बहुत स्पष्ट रू

राज्यपाल की भूमिका

यह जरूर है कि अदालत ने पूर्व राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की भूमिका को स्पष्ट रूप में गलत कहा है; लेकिन अब चूंकि वह पद पर नहीं हैं इसलिए मामला यहीं खत्म हो गया। कुछ ऐसा ही पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ है। वह सदन का सामना करने से पहले ही इस्तीफा दे चुके थे। इसलिए उन्हें फिर से पद पर बहाल करने का प्रश्न ही नहीं रहा। फिर भी झगड़ा खत्म नहीं हुआ है। स्पीकर और चुनाव आयोग के स्तर पर अब नई कानूनी लड़ाई शुरू हो जाएगी।
सबसे बड़ा मुद्दा है, शिवसेना किसकी? यहां चुनाव आयोग का पिछला फैसला मुख्य मुद्दा होगा। आयोग ने शिवसेना और उसका चुनाव चिह्न तीर-कमान शिंदे गुट को सौंप दिया था। इसे सुप्रीम कोर्ट ने सही नहीं माना। कोर्ट का कहना है कि असली शिवसेना तय करते समय जो पैमाना अपनाया गया, वह अपर्याप्त है। आयोग ने अधिकतर सांसद, विधायक और नगरसेवक शिंदे के पक्ष में होने के कारण उनके गुट को असली शिवसेना माना है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब उद्धव ठाकरे के लिए आयोग के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर करने का द्वार खुल गया है।
उद्धव गुट को सबसे पहले यह मामला विधानसभा स्पीकर के सामने उठाना होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में स्पीकर के अधिकारों की पुनर्पुष्टि की है।
एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों की अयोग्यता के मामले पर भी स्पीकर को ही फैसला करना होगा। नए स्पीकर राहुल नार्वेकर बीजेपी के हैं। उन्होंने शिंदे गुट के भरत गोगावले को विप के रूप में मान्यता दे दी थी। वह फैसला गलत करार दिया गया, लेकिन फैसला करने का उनका अधिकार बरकरार है।
ऐसे में शिवसेना का विप कौन, यह अब स्पीकर को तय करना है। उन्हें सबसे पहले असली शिवसेना पार्टी और उसके विधायक दल को मान्यता देनी होगी। इसके लिए दोबारा सुनवाई करनी होगी। संसदीय लोकतंत्र में विप का पद बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। वही पार्टी विधायकों को किसी प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में वोट देने के निर्देश देता है। इस निर्देश को न मानने वाले विधायक अयोग्य करार दिए जा सकते हैं।
कोर्ट ने स्पीकर के लिए इस बारे में कोई समय सीमा तय नहीं की है। केवल ‘उचित समय’ में निर्णय करने का निर्देश दिया है। मणिपुर में ऐसा ही मामला दो साल तक लंबित रहा था। अंत में सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप कर तीन माह में निर्णय देने का निर्देश देना पड़ा। महाराष्ट्र में भी ऐसी स्थिति बन सकती है। हो सकता है तब तक चुनाव आ जाए। यदि ऐसा हो तो नई विधानसभा आएगी, नए स्पीकर आएंगे और सदन में यह मसला ही नहीं रह जाएगा।
अगर स्पीकर इस पर अपना फैसला सुना दें, तब भी लड़ाई समाप्त नहीं होने वाली। उनका फैसला, जैसी कि उम्मीद है शिंदे के पक्ष में गया तो उद्धव इसे चुनाव आयोग के समक्ष चुनौती दे सकते हैं। यदि स्पीकर का फैसला उद्धव के पक्ष में गया, तो शिंदे गुट उसे चुनौती दे सकता है। यह बहुत ही पेचीदा मसला है। पार्टी के संविधान, कार्यकारिणी, अध्यक्ष या प्रमुख के अधिकार आदि दावों-प्रतिदावों, पार्टी में फूट और बहुमत वाला गुट तय करने और उसे ही अंतिम रूप से शिवसेना मानने में बहुत समय लग जाएगा।
राज्यपाल की तरह चुनाव आयोग की जल्दबाजी पर भी सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है। वर्तमान में इस टिप्पणी का आयोग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन उसे भविष्य में दिशानिर्देश अवश्य मिल गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले में स्पीकर की भूमिका के बारे में एक और अहम व्यवस्था दी है। यह सुप्रीम कोर्ट के ही एक अन्य फैसले से संबंधित है। वह मामला सन 2016 का है। अरुणाचल प्रदेश के स्पीकर नबाम रेबिया ने कुछ विधायकों को अयोग्य करार दिया था। उसके कुछ समय पहले विधायकों ने स्पीकर के खिलाफ अविश्वास जताया था। मुद्दा यह था कि क्या जिस स्पीकर के खिलाफ अविश्वास व्यक्त किया गया है, उसे किसी विधायक को अयोग्य करार देने का अधिकार है? सुप्रीम कोर्ट में जब मामला आया तब अदालत ने स्पीकर के आदेश को रद्द कर दिया। शिंदे गुट ने इसी का आधार लिया था, जबकि उद्धव गुट की मांग थी कि नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार के लिए सात सदस्यीय खंडपीठ गठित की जाए और उसका फैसला आने के बाद महाराष्ट्र के मामले पर विचार किया जाए। अदालत ने सुनवाई रोकने से इनकार कर दिया, लेकिन फैसले में नबाम रेबिया मामले में सात सदस्यीय खंडपीठ गठित करने का निर्देश देकर उद्धव गुट की बात मान ली। हालांकि इस पीठ का फैसला आते तक शायद उद्धव गुट का मूल मुद्दा ही खत्म हो जाए।

भविष्य के लिए दिशानिर्देश

अदालत ने महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष में राज्यपाल, स्पीकर, चुनाव आयोग तीनों संवैधानिक संस्थाओं पर विपरीत टिप्पणियां जरूर की हैं, लेकिन उनके संवैधानिक अधिकार बरकरार होने की पुष्टि भी की है। इसलिए यह फैसला आगे के सत्ता संघर्ष में दिशानिर्देश का काम करेगा।
 
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स