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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 23 Nov 2021 7:03 pm IST


लोकतंत्र की हुई बड़ी जीत पर और बड़ी चुनौतियां अभी बाक़ी


जो काम दरअसल सालभर पहले हो जाना चाहिए था, वह प्रधानमंत्री ने अब जाकर किया. तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे लाखों किसानों को दिल्ली की सरहदों पर गर्मी, ठंड और बारिश में बैठे रहने को मजबूर किया, उन्हें आतंकवादी, नक्सली, खालिस्तानी, देशद्रोही सब बताया, उनके ख़िलाफ़ मुक़दमे किए, उन पर बातचीत न करने का आरोप लगाया, संसद के दो-दो सत्र अपनी ज़िद की वजह से जाया हो जाने दिए और जब यह सब नाकाम हो गया तो अपने राजनीतिक नफ़ा-नुक़सान का हिसाब लगाते हुए तीनों कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान कर दिया. प्रधानमंत्री को यह एहसास हो चला था कि इन क़ानूनों की वजह से उनको यूपी-पंजाब में हारना पड़ सकता है और 2022 में इन राज्यों को गंवाने का मतलब 2024 में अपनी सत्ता गंवाना भी हो सकता है.  

लेकिन ठीक है. लोकतंत्र इसीलिए अहमियत रखता है. वह प्रचंड बहुमत से आई ज़िद्दी सरकारों के अहंकार के पहाड़ को पानी में बदल देता है. धरना-प्रदर्शन, आंदोलन इस लोकतंत्र में रक्त-संचार का काम करते हैं. यह रक्त-संचार बना रहना चाहिए वरना धमनियां मोटी होने लगती हैं, शरीर फूलने लगता है, और एक दिन फेफड़े और दिल काम करना बंद कर देते हैं. भारतीय लोकतंत्र जब ऐसी सुषुप्त-शिथिल अवस्था में दिख रहा था तब किसान आंदोलन ने उसमें नया रक्त संचार किया है. क्योंकि बीते एक साल में यह मुद्दा बस किसानों का नहीं रह गया था, यह भारतीय लोकतंत्र की कसौटी बन गया था. यह इस बात की अग्निपरीक्षा का मामला था कि जब चुनी हुई सरकारें मनमाने फ़ैसले थोपने लगें तो जनता उनके बाजू मरोड़ने में कामयाब होती है या नहीं. आज प्रधानमंत्री जो विनम्रता दिखा रहे हैं, वह दरअसल लोकतंत्र की इसी ताकत का प्रमाण है. वरना ख़ुद उन्होंने, उनकी सरकार के दूसरे मंत्रियों ने और उनके डरावने समर्थकों ने किसान नेताओं और किसानों को इस देश का खलनायक साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. अफ़सोस बस इतना है कि सरकार ने इस विवेक और विनम्रता का प्रदर्शन तब किया जब क़रीब सात सौ किसान इस आंदोलन के दौरान मारे गए. वरना सरकारी अहंकार का आलम यह था कि उसके नेता और मंत्री किसानों पर गाड़ी चढ़ाने वाले लोगों का बचाव कर रहे थे. इस ढंग से देखें तो कृषि क़ानून भले वापस हो गए, किसानों के गुनहगार अभी बचे हुए हैं. प्रधानमंत्री को तत्काल अब अपने गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी का इस्तीफ़ा लेना चाहिए जिनके बेटे की गाड़ी से किसान कुचले गए और जिसकी राइफ़ल की फॉरेंसिक जांच की रिपोर्ट से यह बात सामने आई कि उससे गोली भी चली थी.