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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 29 Jun 2023 5:07 pm IST


वीडियो लिंक से पढ़ाई


किताबें पढ़ना मोबाइल फोन या टीवी पर वीडियो देखने की तुलना में बेहतर है। इस वाक्य के पक्ष में तमाम तकनीकी, सामाजिक और वैज्ञानिक तर्क दिए जाते हैं, लेकिन स्क्रीन है कि छूटती ही नहीं। एक अजीब सा नशा तारी है लोगों के दिमाग पर। पिछले दिनों मैंने अपने एक पढ़ने-लिखने वाले दोस्त को मेसेज किया-फ्रेंच फिलॉसफर ज्यां पॉल सार्त्र को समझना चाहता हूं। आसान भाषा में कोई लेख या किताब जानकारी में हो तो बताओ। थोड़ी देर बाद उसने यूट्यूब के दो विडियो लिंक भेज दिए। वीडियो देखकर सार्त्र की फिलॉसफी के बारे में एक मोटी समझ तो विकसित हो गई पर वीडियो बनाने वाले शख्स की सोच से इतर सार्त्र पर मेरा अपना कोई नजरिया विकसित नहीं हुआ।

इसे थोड़े आसान उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। प्रेमचंद की कहानी बड़े भाईसाब ज्यादातर पढ़ने-लिखने वालों ने पढ़ी होगी। कहानी पढ़ने के बाद सभी लोग बड़े भाईसाब और उनके छोटे भाई के बारे में अपनी-अपनी छवि बनाते हैं। वे कैसे दिखते होंगे? कैसे कपड़े पहनते होंगे? बातचीत का तरीका कैसा होगा? कहानी की व्याख्या को लेकर भी सबके अलग-अलग पाठ हैं। अब सोचिए कहानी पढ़ने से पहले हमने इसका वीडियो देख लिया होता तो? हमारे दिमाग को बड़े भाईसाब और उनके छोटे भाई की छवि बनाने के लिए कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता। बहुत कोशिश करने पर हम कहानी की अलग तरीके से व्याख्या कर सकते थे, लेकिन ऐसा कितने लोग करते और वह भी तब जब हमारे पास उसकी एक व्याख्या पहले से मौजूद है।


यही है वीडियो और पढ़ने का अंतर। टेक्स्ट को पढ़ने के दौरान हमारा दिमाग उसे विजुअलाइज करता है, उसके मायने तलाशता है। कई बार तो हम पढ़ते-पढ़ते किसी लाइन पर रुक जाते हैं और सोचने लगते हैं। इस प्रक्रिया में दिमाग को श्रम करना पड़ता है। यही हमारे दिमाग की कसरत है। लेकिन वीडियो के केस में सीन थोड़ा अलग है। वीडियो देखने के दौरान आपको ‘खाली जगह’ नहीं मिलती जो कि टेक्स्ट पढ़ने के दौरान मिलती हैं। ‘खाली जगह’ से तात्पर्य उस पॉज या विराम से है, जहां दिमाग कल्पना करता है। विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास ‘दीवार में खिड़की रहती थी’ का एक वाक्य है-‘हाथी आगे-आगे निकलता जाता था और पीछे हाथी की खाली जगह छूटती जाती थी।’ इसे पढ़ने के दौरान कल्पना के कितने दरवाजे खुलते हैं। लेकिन यही वाक्य वीडियो में सुना होता तो क्या पॉज मिलता? शायद नहीं क्योंकि अगले ही पल दिमाग के पास प्रॉसेस करने को कुछ और होता, क्योंकि वीडियों में उपन्यास की दूसरी लाइन आ गई होती। कुल मिलाकर कल्पनाशीलता वह चिड़िया है जो खाली जगहों पर आकर बैठती है। वीडियो में इन खाली जगहों का अभाव होता है। यही वजह है कि तमाम वीडियो देखने के बाद भी हममें कल्पनाशीलता व अपने नजरिये की कमी बनी रहती है। सार्त्र की बहुत ज्यादा कोट की जाने वाली और बहुत ज्यादा गलत समझी जाने वाली लाइन है ‘हेल इज अदर पीपल।’ मैं इसमें जोड़ना चाहता हूं ‘हेल इज अदर पीपल्स वीडियो।’

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स