स्वतंत्र भारत के निर्माण की कहानी अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर कही जाती है। परंतु भारत जैसे विशाल राष्ट्र के निर्माण की कहानी इसके राज्यों के निर्माण की कहानी के बिना अधूरी है। और जब राज्यों के निर्माण की बात आती है तो उनमें राजस्थान का विशिष्ट स्थान है। ऐसा इसलिए कि स्वतंत्रता से पहले राजस्थान का अस्तित्व ही नहीं था। इसका गठन वर्ष 1949 में 19 स्वाधीन रियासतों के विलय से किया गया।
इस सन्दर्भ में अरविंद पानगड़िया (नीति आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष) लिखित पुस्तक ‘माई फादर: द एक्स्ट्राऑर्डिनरी लाइफ ऑफ़ एन आर्डिनरी मैन’ राजस्थान के गठन और स्वतंत्रता के बाद इसके निर्माण की कहानी बखूबी कहती है। पाठक पुस्तक में इस कहानी को राज्य के एक साधरण नागरिक बालू लाल पानगड़िया की आँखों से देखते हैं।
वरिष्ठ पानगड़िया का जन्म 1921 में भीलवाड़ा जिले के सुवाणा गांव में घोर गरीबी के बीच हुआ। पांच वर्ष की उम्र में वे अपने पिता को खो बैठे। परन्तु अपनी दूरदर्शी माँ के अथक परिश्रम और त्याग के स्वरूप उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। ये आश्चर्य की बात है की सौ साल पहले एक दूरस्थ गांव की अनपढ़ नागरिक होते हुए भी वे शिक्षा के महत्व को समझ पाईं।
भीलवाड़ा उन दोनों मेवाड़ रियासत का हिस्सा था। मेवाड़ में हज़ार से भी अधिक सालों से एक ही राजपरिवार का शासन कायम था। तत्कालीन महाराणा ब्रिटिश सरकार की सहमति से न केवल मनमानी से राज करते थे बल्कि रियासत में हर स्तर पर भ्रषचार का भी बोलबाला था। यही स्थिति राजपुताना की दूसरी रियासतों की भी थी। ऐसे में रियासतों में लोकप्रिय सरकारों की मुहिम के लिए कांग्रेस की सहमति से 1938 में विभिन्न रियासतों में प्रजामंडलों का गठन हुआ। मेवाड़ में किसान नेता माणिक्यलाल वर्मा ने मेवाड़ प्रजा मंडल की स्थापना की।
पानगड़िया बीस साल की उम्र से ही वर्मा के निकट संपर्क में रहे। फिर जब मेवाड़ महाराणा के खिलाफ लोकप्रिय आंदोलन ने जोर पकड़ा तो उन्हीने मेवाड़ प्रजामण्डल द्वारा प्रकाशित मेवाड़ प्रजामण्डल पत्रिका का संपादन कर प्रजामंडल का सन्देश जन-जन तक पहुँचाया। अंत में महाराणा और मुत्सद्दियों के षड़यंत्र नाकामयाब हुए और अप्रैल 1948 में यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ राजस्थान का जन्म हुआ। वर्मा के नेतृत्व में बनी इस राज्य की अति-सफल सरकार में पानगड़िया ने भी हिस्सा लिया।
फिर एक साल बाद अप्रैल 1949 में सरदार पटेल के अथक प्रयासों से राजपुताना की सभी रियासतों और यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ राजस्थान का विलय कर वर्तमान राजस्थान राज्य का गठन हुआ। इस राज्य की राजधानी जयपुर बनी और इसकी सरकार में हिस्सा लेने के लिए पानगड़िया भी जयपुर आ गए। अगले 27 वर्षों में उन्होंने पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपने इस नए राज्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाई।
पानगड़िया के कार्य के माध्यम से पाठकों को राजस्थान में नए प्रशासन की स्थापना और विकास की एक झलक मिलती है। अपने सेवाकाल में उन्होंने अभ्रक की खानों पर एक शक्तिशाली परिवार का एकाधिकार समाप्त किया, जयपुर में एक व्यक्ति के 200 एकड़ जमीन (जहां आज मालवीय नगर खड़ा है) को हड़पने के प्रयास को नाकाम किया और भृष्टाचारी शराब के व्यापारियों के कार्टेल को तोड़ा।
1976 में राज्य सेवा से निवृत होने पर पानगड़िया ने फिर से लिखना शुरू किया और जल्द ही अपने आपको एक इतिहासकार के रूप में प्रस्थापित कर लिया। आने वाले दो दशकों में राजस्थान के इतिहास पर कई पुस्तकें लिखीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रेरणा स्वरूप ‘राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम’ के नाम से एक मौलिक पुस्तक लिखी जिसके लिए राजस्थान साहित्य अकादमी ने उन्हें प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया।
सेवानिवृत्ति के बावजूद पानगड़िया का राजस्थान की सेवा के प्रति उत्साह कम नहीं हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाने वाली इतिहास की एक पुस्तक में महाराणा प्रताप के अनुचित नकारात्मक विवरण के खिलाफ आवाज़ उठाई जिसकी गूँज पूरे देश में सुनाई दी। हर पांचवें वर्ष वित्त आयोग के सामने स्वतंत्र नागरिक के रूप में राजस्थान के हितों की सफलतापूर्वक वकालत भी की।
निजी जिंदगी में पनगड़िया ने अपने बच्चों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया। फलस्वरूप उनके सभी बच्चों ने अपने अपने क्षेत्रों में शोहरत और सफलता हासिल की।
राजस्थान के निर्माण की कहानी के साथ ‘माई फादर’ इस बात को भी बखूबी बताती है कि कैसे एक साधारण महिला (पानगड़िया की माँ), जिसे सिर्फ 35 साल की जिंदगी मिली, अपने सही निर्णय, परिश्रम और त्याग से आने वाली अनेकों पीढ़ियों का भविष्य बदल सकती है।
सौजन्य से - नवभारत टाइम्स