Read in App


• Sat, 11 May 2024 11:25 am IST


अमीर देशों के बदहाल बुजुर्ग


ज्यादा वक्त नहीं गुजरा, जब अमेरिका में बेघर लोगों की बदहाली की रील्स सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स के जरिये भारतीयों ने देखी। एक वक्त वह भी था, जब भारतीय ‘अमेरिकन ड्रीम’ के बारे में सुनते हुए बड़े हुए थे। उन्हें लगता था कि अमेरिका जाते ही उनकी जिंदगी खुशहाल हो जाएगी। अमेरिका का यह सपना अब भी भारतीयों की आंखों से नहीं उतरा है, इसीलिए आज भी अवैध तरीके से यहां से लोग वहां जाते हैं। यह बात भी सही है कि अमेरिका में रह रहे प्रवासी भारतीयों की औसत आमदनी सालाना एक लाख डॉलर से अधिक है और इस मामले में वे अमेरिका में रहने वाले सभी समुदायों से ऊपर हैं। लेकिन ऐसी स्थिति उन्हीं भारतीयों की है, जो शिक्षित और हाइली स्किल्ड हैं और जो वैध तरीके से वहां गए हैं। खैर, अमेरिका का जिक्र मैंने इसलिए किया ताकि यह बात समझी जा सके कि अमीर देशों में भी गरीब होते हैं और उनकी जिंदगी कोई खास अच्छी नहीं होती।

यही बात दक्षिण कोरिया और जापान के बुजुर्गों पर भी लागू होती है। अमीर देशों के संगठन OECD में रहने वाले बुजुर्गों में गरीबी के लिहाज से दक्षिण कोरिया दूसरे नंबर पर है। उससे खराब हाल सिर्फ एस्टोनिया का है। 65 साल से अधिक उम्र के 40% दक्षिण कोरियाई OECD देशों की ओर से तय गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने को मजबूर हैं। इन देशों में अगर किसी की आमदनी राष्ट्रीय औसत आय के 50% से कम है तो उसे गरीबी रेखा से नीचे माना जाता है। जापान में 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में से 20% गरीबी रेखा से नीचे हैं। वहीं, समूचे OECD में इनका प्रतिशत 14 है।

इन देशों में बुजुर्गों की खराब हालत के लिए वहां का पेंशन सिस्टम जिम्मेदार है। जापान में पेंशन सिस्टम दोस्तरीय है। वहां बेसिक पेंशन सभी नागरिकों को मिलती है। इसकी रकम इस बात से तय होती है कि किसी व्यक्ति ने पेंशन के लिए कितने वर्षों तक पैसा जमा किया है। दूसरी व्यवस्था उन लोगों के लिए है, जो फुल टाइम जॉब कर चुके हैं। इस व्यवस्था में कामकाजी उम्र में जितना पैसा पेंशन के लिए कर्मचारी जमा करता है, उतना ही कंपनी की ओर से उसके पेंशन खाते में पैसा जमा कराया जाता है। दक्षिण कोरिया में भी ऐसा ही पेंशन सिस्टम है, लेकिन वहां सबसे अधिक कमाई करने वाले 30% लोग ही बेसिक ओल्ड-एज पेंशन के हकदार होते हैं। 2022 में यह रकम 220 डॉलर यानी 20,000 हजार रुपये मासिक से कम थी। अफसोस की बात यह है कि आने वाले वक्त में दोनों ही देशों में बुजुर्गों की स्थिति और बुरी हो सकती है। उसकी वजह यह है कि वहां कामकाजी लोगों की संख्या कम हो रही है, जबकि आश्रित बुजुर्गों की आबादी में बढ़ोतरी हो रही है। और, आने वाले वक्त में इस ट्रेंड के बदलने की कोई सूरत नहीं दिख रही है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स