यह जमाना है जिंदगी में रोशनी भरने वाली, यानी इंस्पिरेशनल बातों का। ऐसी किताबों और सलाहों का बाजार गर्म है, जिनसे खुश होने और आगे बढ़ने का हौसला मिलता है। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि इन सलाहों से गुजरने के बाद जो जोश आपको हासिल हुआ होता है, वह ज्यादा देर नहीं टिकता और जिंदगी अपने थके हुए ढर्रे पर लौट आती है? हम यहां यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्यों इनकी चमक अगले दिन फीकी पड़ने लगती है।
बी योरसेल्फ यानी अपनी हस्ती पर कायम रहो, किसी और जैसा बनने या लगने की कोशिश मत करो। दिक्कत यह है कि कुछ खुशनसीब ही होंगे, जो जानते होंगे कि वे क्या हैं, जिस पर उन्हें टिके रहना है। हम सामान्य लोग अपने माहौल, तालीम और जानकारों का मिला-जुला असर होते हैं। और अगर हम भयानक रूप से घमंडी या खुद पर फिदा नहीं हैं, तो हमें अपनी पहचान का सही-सही पता नहीं होता। हमें किसी किताब की नहीं, एक असरदार शख्स की जरूरत होती है, जो हमारे लिए हमारी हस्ती को डिफाइन कर दे। इसीलिए गुरुओं की कही यह बात भी हमें जल्द ही फीकी लगने लगती है कि इस संसार में हर किसी का एक मकसद होता है।
आम जिंदगी में हमारे मकसद बड़े मामूली किस्म के होते हैं। बहुत छोटे और वक्ती मकसदों को लेकर हम चलते हैं और कोई ग्रैंड विजन हमें पीछा करने की दावत नहीं दे रहा होता। जिंदगी ठीक से जी लेना ही हमारा सबसे महान मकसद होता है। इंस्पिरेशनल गुरु जिस सूत्र पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं, वह है अपने सपनों को जीना। उनका कहना है कि हर किसी का कोई सपना होता है। अपनी कमजोरियों के चलते हम उसे सच नहीं कर पाते। वे पूरी जान लगाकर हमें सिखाते हैं कि कैसे यह सपना पूरा किया जाना चाहिए। कैसे हम अपनी खामियों को सुधारें, क्योंकि दुनिया तो हमारे हिसाब से सुधरने से रही।
अब हकीकत यह है कि दुनिया हमारे अंदाजे से ज्यादा जालिम है। फिर हमारे मन में एक ही सपना हो, कोई जरूरी नहीं। हम अक्सर एक से ज्यादा सपने पालते हैं और उन्हें बार-बार बदलते भी रहते हैं। बड़ा मुश्किल है किसी सपने को फाइनल कर लेना। और अगर ऐसा हो भी जाए, तो हम पाते हैं कि उसे पूरा करने के चक्कर में बहुत कुछ गंवाने की नौबत आ रही है। हकीकत में जिंदगी की कहानी हमेशा सुखांत तक नहीं पहुंचती, जैसा कि गुरु दावा करते हैं।
हर बात को पॉजिटिव मुकाम तक ले जाने में इतने समझौते करने पड़ जाते हैं कि इंसान खुद को वाहियात समझने लगता है। एक बहुत दोहराया जाने वाला फंडा इट्स माई लाइफ, यानी ये जिंदगी मेरी है, रिश्तों, जरूरतों और लिहाजों के जंजाल में बेमानी हो जाता है। यह मेरी लाइफ होगी, लेकिन मैं इस दुनिया का ही जीव हूं, जो मैंने नहीं बनाई है, न ही इसे मैंने चुना है।
यहां तक कि यह फॉर्म्युला कि प्यार सबसे बड़ा जादू है भी हालात को सौ फीसदी हमारे फेवर में नहीं बदल पाता। प्यार की ताकत बेमिसाल है, लेकिन जलन, नफरत और हेकड़ी ने भी मां का दूध पिया है। जब ये हथियार निकलते हैं, तो प्यार बहुत देर तक साथ नहीं देता। जिंदगी को लेकर एक कॉमन फिलॉसफी यह भी है कि जिंदगी बहुत छोटी है, इसलिए हमें आज में जीना चाहिए। अगर हम ऐसा कर सकें तो क्या बात है। हर पल को जीकर हम वाकई इसे लंबा और गहरा बना सकते हैं। लेकिन क्या हमारा आज हमारे बीते और आने वाले कल से तलाक ले सकता है?
और अगर सपनों के लिए ही जीना है, तो आज में खोए रहकर कैसे काम चलेगा? यह सही है कि हम इस पल में नहीं जीकर बहुत से मजे खो देते हैं, लेकिन जिंदगी टुकड़ों में होती भी नहीं और पलों के बीच की कड़ियां हमारे दिमाग से गायब नहीं हो सकतीं। इंसान की एक डेफिनिशन यही है कि वह सोचने वाला जानवर है। और सोचना हमेशा गुजरे हुए और आने वाले कल के साथ होता है। अब इस विचारों से भरे दिमाग को कैसे ठिकाने लगाएं?
सबसे दिलचस्प यह फॉर्म्युला है- अगर तुम किसी चीज को शिद्दत से चाहते हो, तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में जुट जाती है। अब इस दावे को आजमाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि अगर आपने चाहा और फिर भी सपना पूरा नहीं हुआ, तो कसूर आपकी चाहत का ही होगा। कौन गारंटी दे सकता है कि उसकी चाहत में कभी गलती से भी कोई चूक नहीं हुई? लेकिन काश यह बात सच होती, भले ही दूसरे तमाम मंत्र भाड़ में जाएं। ऐसा होता, तो जिंदगी कितनी मजेदार होती। इंस्पिरेशन कमाल की चीज है। अगर आप को लग रहा हो कि यहां उसकी हवा निकाली गई है, तो यह जानबूझकर नहीं है। वाकई मैं भी चाहूंगा कि कोई सूत्र आप और हम खोजें जो इन महान बातों को सचमुच कारगर बनाएं और हमारी जिंदगी में चमत्कार पैदा हो। क्या आपके पास ऐसा कोई मंत्र है?
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स