सुप्रीम कोर्ट भ्रष्टाचार निरोधक कानून के उस प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गया है जिसमें भ्रष्टाचार के एक मामले में सरकारी अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए पूर्व मंजूरी लेने को अनिवार्य किया गया है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वकील प्रशांत भूषण की इस दलील का संज्ञान लिया कि जनहित याचिका को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किये जाने की जरूरत है क्योंकि नोटिस 26 नवंबर 2018 को जारी किया गया था।
शीर्ष अदालत ने 2018 में जनहित याचिका पर जारी किया था नोटिस
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ''मैं सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाऊंगा।" शीर्ष अदालत ने 2018 में जनहित याचिका पर नोटिस जारी करने के बाद 15 फरवरी, 2019 को केंद्र से चार दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा था और उसके बाद याचिका को पीठ के समक्ष सूचीबद्ध नहीं किया गया। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि जनहित याचिका दायर करने वाला एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) केंद्र के जवाब दाखिल करने के एक सप्ताह के भीतर अपना प्रत्युत्तर दाखिल कर सकता है। याचिका में भ्रष्टाचार निरोधक कानून की संशोधित धारा 17ए (1) की वैधता को चुनौती दी गई है।