क्या उत्तराखंड में एक भी आत्मविश्वास साहस से कह सकता है कि यहां गैरसैंण की हस्ती को चुनावी कश्ती समझ कर इस्तेमाल नही किया गया है ? गहन में जहन भी जानता है की राजनीतिक पार्टियों की गैरसेंण की नींव पर सियासी सल्तनत खड़ी करने की कवायद पुरानी है- बस कुछ नया है तो ये कि कहां तो पार्टियों के प्रयोजन पूर्ण करने वाले गैरसैंण के विकास की दरकार थी औऱ कहां हर प्रकार से भाजपा सरकार में इसे दरकिनार कर दिया गया है..