यदी राज्य में कोई भी ऋतु गैरसैंण में सत्र आयोजित करने के लिए अनुकूल थी ही नही तो इसे ग्रीषमकालीन राजधानी का दर्जा दिया ही क्यों ? समझ से परे है की प्रदेश के मान्यों को गैरसैंण की ठंड तब दिखाई क्यों नही देती जब इसकी आंच में राजनीतिक रोटियां सेकी जाती है ?