क्या शासन का आश्वासन आफत को दावत नही है ?
क्या मानसून का मंज़र – खंजर नही है पुराने घावो के लिए ?
क्या त्रासदी की तस्वीरें फिर शमशीरें बनकर हृदय में घात नही करती ?
आपदा से निपटने में वादों का ईंधन या उचित प्रबंधन ? किसका तकाजा है ?
और आखिरी प्रशन- बरसात के आरंभ मे ही आलम ये दिखा है तो उत्तराखंड के लिए आगामी दिनो में क्या लिखा है ???
दरअसल ये पूछना पड़ रहा है क्योंकि इधर प्रदेश में मानसून ने दस्तक दे दी है और उधर खबरों में प्रलय ने जगह ले ली है ... क्यों ऐसा कह रहें हैं समझने के लिए हमारे साथ आखिर तक बने रहे...