नवरात्री का दूसरा दिन माँ दुर्गा के दूसरे रूप माँ भ्रमाचारिणी की आराधना की जाती है , इनके दाहिने हाथ मे जप की माला एवं बाए हाथ में कमंडल रहता है। पूर्व जन्म मे ये हिमालय के घर मे पुत्री रूप मे उत्पन्न हुई थी और नारद के उपदेश से इन्होने भगवान शंकर जी को पति रूप मे प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपस्चारिणी अथार्त भ्रमाचारिणी नाम से अभिहीत किया गया , एक हज़ार वर्ष उन्होंने केवल फल , मूल खाकर व्यतीत किये और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्वाह किया था।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए देवी ने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप मे भयानक कष्ट सहे। हज़ारो वर्ष की इस कठिन तपस्या से देवी का शरीर क्षीण हो उठा , उनकी इस तपस्या से तीनो लोक मे हाहाकार मच गया।
देवता ऋषि और मुनि उनकी तपस्या की सराहना करने लगे, अंत मे ब्रम्हा जी ने आकाशवाणी करते हुए कहा हे देवी आज तक इतनी कठिन तपस्या किसी ने नहीं की , तुम्हारी इस तपस्या की सराहना चारो ओर हो रही है, तुम्हे चंद्रमौलि शिवजी पति रूप मे अवश्य प्राप्त होंगे इस पौराणिक कथा का सार यह है की जीवन के मुश्किल दिनों में भी मन को विचलित नहीं करना चाहिए और अपने लक्ष्य पर मन लगाकर काम करना चाहिए।