हरिद्वार। नवरात्र साधना के तीसरे दिन देश भर के साधकों को ऑनलाइन संबोधित करते हुए अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि जब मनुष्यों के अच्छे कर्मों का उदय होता है, तब संतों से मिलन होता है। संतों का मिलन जीवात्मा के कल्याण के लिए होता है। अच्छे संत अपने निकटवर्ती लोगों को सकारात्मक विचार के साथ उसके चहुंमुखी विकास के लिए प्रेरित करते हैं। संत साधकों को लक्ष्य प्राप्ति में सहयोग करते हैं। वे सदैव समाज के हित के लिए काम करते हैं। श्रीअरविन्द, युगऋषि पं० श्रीराम शर्मा आचार्यश्री आदि ऐसे ही संतों की गिनती में आते हैं। नवरात्र साधना ऐसे ही संतों से मिलन के द्वार खोलने वाली साधना का नाम है।
आध्यात्मिक विचारक डॉ पण्ड्या ने कहा कि चैत्र नवरात्र के दिनों में साधनात्मक मनोभूमि के साथ रामचरित मानस का अध्ययन, मनन करने से चित्त की शुद्धि संभव है। उसके मूलभूत विचारों को चित्त में उतारने से मनुष्यों का कायाकल्प होता है।
कोरोना के नियमों का पालन करते हुए देश-विदेश के लाखों गायत्री साधक अपने-अपने घरों, स्थानीय प्रज्ञा संस्थानों में गायत्री साधना में जुटे हैं और उन्हें नियमित रूप से गायत्री परिवार प्रमुख डॉ प्रणव पण्ड्या नियमित रूप से आनलाइन संबोधित कर रहे हैं। इससे पूर्व संगीत विभाग के गायकों द्वारा प्रस्तुत अवतरित हुई मां गायत्री, युगशक्ति बनी यह निश्चय जानो गीत ने साधकों के मनों में साधनात्मक खाद पानी देने का काम किया।
वहीं साधकों को संगीत के साथ पावन प्रज्ञा पुराण कथा का श्रवण कराते कथावाचकों ने जीवन देवता के साधना आराधना विषय पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर गायत्री परिवार के जनक श्रीराम शर्मा आचार्य के कथनों को याद करते हुए शशिकांत सिंह ने कहा कि मनुष्य को मानवोचित ही नहीं, देवोपम जीवन जी सकने योग्य साधन प्राप्त होते हुए भी, वह पशुतुल्य दीन-हीन जीवन इसलिए जीता है कि वह जीवन को परिपूर्ण, सर्वांगपूर्ण बनाने के मूल तथ्यों पर ध्यान नहीं देता है और न ही उसका अभ्यास करता है।
जीवन को सही ढंग से जीने की कला जानना तथा कलात्मक ढंग से जीवन जीना ही जीवन जीने की कला कहलाती है। आध्यात्मिक वास्तविक एवं व्यावहारिक स्वरूप यही है। अपने को श्रेष्ठतम लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए सद्गुणों एवं सत्प्रवृत्तियों के विकास का जो अभ्यास किया जाता है, उसे ही जीवन-साधना कहते हैं और नवरात्र साधना के दौरान इस बात का अवश्य ध्यान रखें।