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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 4 May 2023 4:23 pm IST


'सोहराई’ कला ने बदली जयश्री की तकदीर, अब समूह बनाकर अन्य महिलाओं को भी कर रहीं आत्मनिर्भर


  झारखंड की सोहराई कला 10 हजार साल पुरानी है। इस कला को जयश्री इंदवार एक बार फिर से राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने में जुटी हैं। खास बात यह है कि जयश्री इस काम को अकेले नहीं कर रही हैं बल्कि वे महिलाओं का एक समूह बनाकर इस काम को पूरा कर रही हैं। ऐसा करके न सिर्फ जयश्री बल्कि अन्य महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं। बढ़ते शहरीकरण के इस दौर में सोहराई कला लगभग विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई थी। मिट्टी के घरों की जगह पक्के मकानों ने ले ली थी। यही वजह थी कि  भित्ति चित्र यानी सोहराई पेंटिंग को इन अट्टालिकाओं में जगह नहीं मिल पा रही। ऐसे में जयश्री ने साल  2005 में इस कला को  आगे बढ़ाने का काम शुरू किया।
शुरुआती दौर में जयश्री के साथ महिलाओं का इतना बड़ा समूह नहीं था, जिससे वे पहले सिर्फ कपड़ों पर ही सोहराई पेंटिंग करती थी लेकिन लोगों का ज्यादा सपोर्ट न मिलने से मायूस जयश्री ने कुछ नया करने की सोची और दीवारों को ही अपनी कला प्रदर्शनी का जरिया बनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे जयश्री को इसमें सफलता मिलने लगी और उन्होंने महिलाओं का एक समूह बनाया जिसे ‘स्तंभ’ ट्रस्ट का नाम दिया। इस ट्रस्ट  से जुड़कर आज सैकड़ों महिलाएं जयश्री इंदवार के साथ में काम कर रही हैं और सोहराई कला को पहचान दिला रही हैं। साथ ही खुद को आर्थिक रूप से मजबूत भी कर रही हैं।
जयश्री इंदवार समय-समय पर पेंटिंग एग्जिबिशन, वर्कशॉप और विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के माध्यम से भी इस कला को आगे बढ़ाने का प्रयास करती रहती हैं। झारखंड के कई जिले जैसे रांची, गुमला और लोहरदगा समेत अन्य इलाकों की सैकड़ों महिलाओं और युवतियों को जयश्री ने पहले ट्रेनिंग दी और फिर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद की। हाथों में हुनर आ जाने से आज कई महिलाएं आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन गई हैं। सोहराई पेंटिंग की अच्छी डिमांड होने की वजह से अब इन्हें रोजगार के लिए भटकने की भी जरूरत नहीं पड़ रही है।