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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 18 Jan 2023 3:30 pm IST

मनोरंजन

Death Anniversary: मेहनताना नहीं मिला तो बिफर पड़े थे हरिवंश राय बच्चन, काव्यपाठ करने से कर दिया था मना


बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के पिता डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन का नाम जेहन में आते ही उनकी रचना जुबां पर खुद-ब-खुद आ जाती है। ये बात करीब सात दशक पुरानी है, जब मंचों पर हरिवंश राय ऐसा काव्य पाठ करते थे कि लोग सुध-बुध खो बैठते थे। हिंदी के जाने माने कवि-लेखक हरिवंश राय बच्चन का निधन 18 जनवरी 2003 को हो गया था। उनकी कविताओं में सरलता और संवेदनशीलता का जो मिश्रण था वो उन्हें हमेशा के लिए अमर कर गया।
 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव पट्टी में जन्मे हिंदी साहित्य के महाकवि हरिवंश राय बच्चन ने साल 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। इसके बाद वे 1941 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवक्ता भी रहे। हालांकि बाद में वे पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य पर रिसर्च किया। बात 1954 की है जब प्रयागराज में आयोजित कवि सम्मेलन में भरी महफिल में बच्चन ने बिना मेहनताना के काव्य पाठ करने से इंकार कर दिया था। करीब एक घंटे तक चली मान-मनौव्वल के बाद आयोजकों को झुकना पड़ा और वे मेहनताना देने के लिए राजी हुए, तब हरिवंश राय बच्चन ने  काव्य पाठ किया। इस तरह से पहली बार उन्होंने काव्य पाठ से 101 रुपए की कमाई की थी।
कवि ने खुद तो मेहनताना हासिल किया ही, साथ ही अन्य कवियों को भी दिलवाया। यही से कवियों को उनकी कविता पाठ का मेहनताना देने की परंपरा शुरू हुई, जो अभी भी चल रही है। बताया जाता है कि साल 1954 में प्रयागराज के पुराने शहर जानसेनगंज में जीरो रोड जाने वाली सड़क पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था,  जिसमें  डॉ हरिवंश राय बच्चन, गोपीकृष्ण गोपेश, उमाकांत मालवीय सरीखे कई कालजयी कवियों को आमंत्रित किया गया था।  कार्यक्रम का आयोजन शाम को  होना था। ऐसे  में  जिन-जिन कवियों को बुलाया गया था, वह सभी मंच पर पहुंच गए थे।ये वह समय था जब डॉ हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला से लेकर मधुकलश, मधुबाला जैसी काव्य रचनाएं धूम मचा रही थी  इसलिए आयोजकों ने निर्णय लिया था कि सबसे पहले डॉक्टर बच्चन ही काव्यपाठ करेंगे। सारी तैयारी पूरी थीं, लेकिन आयोजन से ठीक पहले डॉक्टर बच्चन ने काव्य पाठ करने से इनकार कर दिया।
वो बोले, जब आप टेंट वाले, माइक वाले को पैसा देते हो तो कवियों को क्यों नहीं?, जबकि सच ये है कि कवियों की वजह से ही सारी महफिल सजती है, अन्यथा आयोजन का क्या औचित्य है? डॉ. बच्चन के इस फैसले से पूरा आयोजक मंडल अवाक रह गया था, लेकिन मंच पर मौजूद अन्य कवि भी डॉ. बच्चन के इस प्रस्ताव से पूर्णतया सहमत थे (लिहाजा किसी ने भी आयोजकों के पक्ष में बात नहीं की) इस बात बात कवियों और आयोजकों के घंटे भर तक मान मनौव्वल चलती रही, जब आयोजक मंडल को लगा कि अब बात नहीं बनने वाली है तो उन्होंने डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन की मांग मान ली और मेहनताना देने  को राजी हो गए क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। कवि सम्मेलन खत्म होने के बाद डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन को मेहनताने के रूप में पहली बार आयोजक मंडल ने 101 रुपए दिए। वहीं उनके दोस्त कवि गोपीकृष्ण को 51 रुपए और उमाकांत मालवीय को 21 रुपए का मानदेय मिला।