खरीफ की फसल की बेहतरी और अच्छे फल उत्पादन के लिए हरेले की पूर्व संध्या पर डिकारे की पूजा होती है। गौरी और माहेश्वरी के रूप में इनकी पूजा होती है। मिट्टी को गूंथकर इन्हें बनाया जाता है। इनकी पूजा भी बरसात के दिनों में होने वाले फलों से होती है। शंकर भगवान की पूजा के बाद दूसरे दिन हरेला काटा जाता है और इस हरेले को सिर पर धारण करने के साथ ही अराध्य देव को भी अर्पित किया जाता है। इसके अलावा घरों के चौखट के ऊपर भी इस हरेले को गाय के गोवर से चिपकाया जाता है। हालांकि नई पीढ़ी डेकारों को लेकर अनभिज्ञ है। गांव में आज भी इसे पर्व के रूप में मनाया जाता है।