देहरादून : शीतकाल में औसत से अधिक बारिश और पाला खेती-किसानी के लिए खतरा साबित हो रहे हैं। रबी की फसल के साथ ही फल-सब्जियों की पैदावार पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पत्ते और फूल झड़न के साथ ही पाले से फसल में कीड़े लगने का भी खतरा बना हुआ है। ऐसे में कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को फसल के बचाव को विशेष उपाय करने के सुझाव भी दिए हैं।
उत्तराखंड में इस बार अक्टूबर से जनवरी तक बारिश और बर्फबारी के कई दौर हुए। अब तक शीतकाल में बारिश सामान्य से डेढ़ गुनी दर्ज की गई है। जिससे जमीन में अधिक नमी बनी हुई है। इसके अलावा पाला भी मुसीबत बना हुआ है। टमाटर, बैंगन, गाजर, मटर, आलू आदि सब्जियों के साथ चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया आदि की फसल को भारी नुकसान पहुंच रहा है। गेहूं की फसल पर भी इसका असर दिखने लगा है। इसके अलावा अरहर को 70 व गन्ने को 50 प्रतिशत नुकसान पहुंचने का अनुमान है। लगातार पाला गिरने से फसल का हरा रंग समाप्त हो जाता है और पत्तियों का रंग मिट्टी जैसा दिखता है। ऐसे में पौधों के पत्ते सडऩे से बैक्टीरिया जनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है।