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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 30 Jan 2023 1:39 pm IST


रुद्रप्रयाग में हुआ घंटाकर्ण की जात का आयोजन, दो फरवरी को होगा समापन


 देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का वास माना जाता है. लोगों की अटूट आस्था इस विश्वास को प्रगाढ़ करती है. वहीं  (धार्मिक अनुष्ठान) में बड़ी संख्या में धियाणियां (बहू-बेटियां) अपने कुल देवता के दर्शन के लिए अपने मायके पहुंच रही हैं. 24 वर्षों बाद आयोजित हो रही नौ दिवसीय जात का दो फरवरी को विधिवत समापन हो जाएगा. घंटाकर्ण देवता को धियाणियों का भी देवता माना जाता है.मंदिर की पौराणिक कथा: श्रीघंटाकर्ण की उत्पति के बारे में कई लोककथा, पौराणिक प्रमाण एवं जनश्रुतियां हैं. श्रीघंटाकर्ण को महादेव शिव के भैरव अवतार में एक माना जाता है. टिहरी, पौड़ी और बदरीनाथ में श्रीघंटाकर्ण को क्षेत्रपाल देवता माना जाता है. बदरीनाथ में घंटाकर्ण का मंदिर है और उसे देवदर्शनी (देव देखनी) कहते हैं. भगवान बदरीनाथ की पूजा से पहले श्रीघंटाकर्ण की पूजा का विधान है. घंटाकर्ण को बदरीनाथ धाम का क्षेत्रपाल (रक्षक) माना जाता है. इसलिए बदरीनाथ के कपाट से पहले घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खुलते हैं जो बदरीनाथ के कपाट बंद होने के बाद ही बंद किए जाते हैं.