खुदरा महंगाई की दरें अगर तीसरी तिमाही में भी रिजर्व बैंक के तय दायरे से ऊपर रहती हैं, तो मजबूरन रेपो रेट मेें बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। उत्पादों की बढ़ती कीमतों को थामने के लिए मौद्रिक और राजकोषीय दोनों मोर्चे से कोशिशें करना जरूरी है।
मामले से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि चालू वित्तवर्ष की पिछले दो तिमाहियों में खुदरा महंगाई दर 6 फीसदी से ऊपर बनी रही। अगर जनवरी-मार्च तिमाही मेें भी यह आरबीआई के तय 2-6 फीसदी के दायरे से ऊपर रहती है, तो उसे सरकार को लिखित में इसका कारण बताना होगा।
मौद्रिक समिति की लगातार चौथी बैठक में नहीं
इसके समाधान के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना ही एक मात्र विकल्प बचेगा। हालांकि, कोविड-19 से पहले ही दबाव में चल रही अर्थव्यवस्था पर ब्याज दरों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी विपरीत प्रभाव डाल सकती है।
खाद्य उत्पादों पर घटाया उत्पाद शुल्क
महंगाई के मोर्चे पर रिजर्व बैंक के हाथ भले ही बंधे हों, लेकिन सरकार ने इसे नीचे लाने की भरसक कोशिशें की हैं। खुदरा महंगाई पर सबसे ज्यादा असर खाद्य उत्पादों का पड़ता है।
इसे देखते हुए मोदी सरकार ने दालों, खाद्य तेल और तिलहन पर आयात शुल्क में कटौती कर दी है। इस कदम से विदेशों से आने वाले उत्पादोें की कीमतें घरेलू बाजार में नीचे आएंगी और खुदरा महंगाई पर कुछ हद तक काबू पाने में मदद मिलेगी। इसी बीच, आरबीआई वित्तीय तंत्र में पूंजी तरलता बढ़ाने की कोशिश की है, ताकि बैंकिंग क्षेत्र को मजबूत बनाया जा सके।