देहरादून: उत्तराखंड में संसाधनों के अभाव में आम जनता को ओवरलोडिंग बसों के साथ डग्गामार वाहनों में सफर करना पड़ता है. इसकी कीमत कई बार लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. अल्मोड़ा बस हादसे में भी ऐसा ही हुआ था. इस हादसे में भी 38 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. वहीं अब इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने और यात्रियों की सहूलियत को देखते हुए उत्तराखंड परिवहन निगम पर्वतीय क्षेत्रों में भी बसों का बेड़ा बढ़ाने की सोच रहा है. हालांकि इससे उत्तराखंड परिवहन निगम पर वित्तीय बोझ भी पड़ेगा. दरअसल प्रदेश के चार जिले ऐसे हैं, जहां आजादी से बाद से तक परिवहन निगम का कोई डिपो नहीं है. उत्तराखंड परिवहन निगम के प्रदेश में तीन डिवीजन है. इनमें देहरादून, नैनीताल और टनकपुर शामिल हैं. इन तीनों डिवीजन के अधीन प्रदेश भर में कुल 20 डिपो मौजूद हैं. देहरादून डिवीजन में कुल 8 डिपो हैं. इनमें देहरादून डिपो, देहरादून ग्रामीण डिपो, देहरादून पर्वतीय डिपो, ऋषिकेश डिपो, हरिद्वार डिपो, रुड़की डिपो, कोटद्वार डिपो और श्रीनगर डिपो शामिल हैं.
इसके अलावा नैनीताल डिवीजन में 9 डिपो हैं. इसमें हल्द्वानी डिपो, काठगोदाम डिपो, रामनगर डिपो, भवाली डिपो, काशीपुर डिपो, रुद्रपुर डिपो, रानीखेत डिपो, अल्मोड़ा डिपो और बागेश्वर डिपो शामिल हैं. इसी क्रम में टनकपुर डिवीजन में तीन डिपो हैं. इसमें टनकपुर डिपो, लोहाघाट डिपो और पिथौरागढ़ डिपो शामिल हैं.प्रदेश के चार जिले ऐसे भी हैं, जहां देश की आजादी के बाद से अभी तक एक भी डिपो स्थापित नहीं हो पाया है. इन चार जिलों में चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और टिहरी जिले शामिल हैं. चारों जिले पर्वतीय जिले हैं. फिर भी परिवहन निगम इस जिलों में बसों का संचालन करता है, लेकिन समिति संख्या में है. ऐसा नहीं है कि इन चारों जिलों में डिपो की आवश्यकता महसूस नहीं हुई, लेकिन परिवहन निगम के घाटे के चलते इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया. हालांकि इस दिशा में विचार किया जा रहा है.