साल 2019 में हर घंटे एक भारतीय नागरिक ने बेरोजगारी, गरीबी या दिवालिएपन के कारण खुदकुशी की। तकरीबन 25 हजार भारतीय 2018 से 2020 के बीच बेरोजगारी या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या के लिए मजबूर हुए। जो लोग अब भी बेरोजगार हैं, उनके लिए विरोध प्रदर्शन एक स्वाभाविक नियति है। हजारों प्रदर्शनकारियों ने रेलवे भर्ती प्रक्रिया में कथित खामियों को लेकर जनवरी 2022 में रेलवे के डिब्बे फूंक दिए। एक संविदाकर्मी के लिए सम्मान के साथ राष्ट्र की सेवा करना, उसके बुनियादी हक और सरोकार से जुड़ा मसला है। इसकी अवहेलना की स्थिति में हाल में हमने अग्निवीर योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन उबलते देखा है।
स्वास्थ्यकर्मियों को झटका
सरकारी नौकरी करने वालों के लिए भी स्थिति खास बेहतर नहीं है। मई, 2022 में हरियाणा में 2,212 संविदा स्वास्थ्य कर्मियों की सेवाएं एक झटके में समाप्त हो गईं। जो लोग एकबारगी सड़क पर आए, उनमें नर्स, सफाईकर्मी, सुरक्षा गार्ड और पैरामेडिकल स्टाफ शामिल हैं। इन लोगों को कोविड महामारी के दौरान काम पर रखा गया था, लेकिन बाद में उनकी जरूरत महसूस नहीं की गई। ‘इस्तेमाल करो और फेंको’ का यह क्लासिक उदाहरण है।
शॉर्ट नोटिस पर लोगों को रखना और उन्हें हटाना हमारी कार्य संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसे बाहर से आयात किया गया है। इस आयातित संस्कृति के कारण असम में 8,300 पंचायत और ग्रामीण विकास संविदाकर्मियों ने फरवरी 2022 में विरोध प्रदर्शन किया। वे 12-14 वर्षों से अनुबंध पर थे और उन्हें बोनस, भत्ते, पेंशन या वेतन संशोधन नहीं दिए गए थे। इसी तरह अप्रैल, 2022 में छत्तीसगढ़ के राज्य बिजली विभाग के 200 संविदाकर्मियों पर पहले पानी की बौछार की गई और फिर उन्हें गिरफ्तार किया गया। एक लोक सेवक के लिए ऐसी सूरत का सामना करना कितना त्रासद है, बताने की जरूरत नहीं।
दरअसल, इस पूरे मामले में समस्या दोहरी है। पहली बात तो यह कि सरकार में खाली पदों को पर्याप्त गति से नहीं भरा जा रहा। जुलाई, 2021 में सभी स्तरों पर सरकार में 60 लाख से अधिक रिक्तियां थीं। इनमें से 9,10,513 रिक्तियां केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों में थीं, जबकि पीएसयू बैंकों में दो लाख रिक्तियां होने का अनुमान था। इसके अलावा राज्य पुलिस में 5,31,737 से अधिक रिक्तियां और प्राथमिक विद्यालयों में 837,592 पद खाली होने का अनुमान था। सरकार ने 1.5 वर्षों में मिशन-मोड में 10 लाख लोगों की भर्ती की बात कही है। हालांकि, यह समस्या के आकार से कम होगा। हमें इस मोर्चे पर ज्यादा गंभीर पहल करनी होगी।
दूसरे, जहां रिक्तियों भरी भी जा रही हैं, वे ज्यादातर संविदा के आधार पर ही हैं। 2014 में 43 फीसदी सरकारी कर्मचारियों की नौकरी अस्थायी या संविदा पर थी। 2018 आते-आते इस श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की संख्या 59 फीसदी तक पहुंच गई। मार्च 2020 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) के लिए संविदात्मक (और गैर-स्थायी) कर्मचारियों का आंकड़ा 498,807 तक पहुंच गया। फीसदी में यह बढ़त 19 से बढ़कर बढ़कर 37 फीसदी के रूप में सामने आया। इस दौरान स्थायी कर्मचारियों की हिस्सेदारी 25 फीसदी गिरी।
2020 में, जब महामारी के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा हुई तो उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रुप बी और सी कर्मचारियों के लिए भर्ती में संशोधन करने की मांग की। पांच साल की अवधि के लिए संविदात्मक रोजगार बढ़ाने की इस पहल में कर्मचारियों को भत्ते और विशिष्ट लाभ की पेशकश नहीं की गई। गौरतलब है कि 2020 में यूपी में ऐसे कर्मचारियों की संख्या 9 लाख थी। इस व्यवस्था के तहत पांच साल की अवधि के बाद नियमितीकरण की भी बात कही गई। अलबत्ता इसके लिए एक कठोर मूल्यांकन प्रक्रिया से गुजरना होगा। जो इस प्रक्रिया में पास नहीं होंगे, उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। मृत कर्मचारी के किसी भी आश्रित को यदि ऐसे पदों पर नियुक्त किया जाता है, तो उसे भी इसी तरह के मूल्यांकन से गुजरना होगा।
हमें संविदात्मक रोजगार का विस्तार करने के बजाय सार्वजनिक सेवाओं को बढ़ावा देना चाहिए। पिछले कुछ दशकों से हम सार्वजनिक वस्तुओं में कम निवेश कर रहे हैं। कोविड संकट के दौरान यह साफ दिखा कि महामारी को तो छोड़ दें, हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था के पास सामान्य परिस्थितियों में भी नागरिकों को पर्याप्त स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने की क्षमता नहीं है। सार्वजनिक सेवा प्रावधान के विस्तार से कुशल श्रम के साथ अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों का सृजन भी होगा, जो हमें सामाजिक स्थिरता प्रदान करेगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाने पर जोर देने से सामाजिक संपत्ति का निर्माण होगा। इससे आयुष्मान भारत जैसे बीमा-आधारित मॉडल के भी कारगर होने में मदद मिलेगी। इस तरह के खर्च से अंततः उपभोक्ता मांग में वृद्धि के साथ कई और ठोस प्रभाव सामने आएंगे।
इसी तरह अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में रोजगार सृजन की महत्वपूर्ण संभावनाएं हैं। अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में भी अपशिष्ट जल उपचार क्षमता के विस्तार की महत्वपूर्ण गुंजाइश है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने और हरित गतिशीलता को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण जनशक्ति की आवश्यकता होगी, जिससे हरित रोजगार पैदा होगा। इसके अलावा, हमें पर्माकल्चर, बागवानी और नर्सरी प्रबंधन में महत्वपूर्ण रोजगार क्षमता के साथ शहरी खेती को प्रोत्साहित करना जारी रखना चाहिए।
सौजन्य - नवभारत टाइम्स