आज वैशाख माह की द्वादशी तिथि है। ज्योतिषाचार्य, वास्तुशास्त्री, भागवत कथा प्रवक्ता एवं कर्मकांड विशेषज्ञ आचार्य राजेंद्र तिवारी बताते हैं कि वैशाख महीने की द्वादशी तिथि भगवान विष्णु की पूजा के लिए बहुत खास मानी गई है। इस दिन किए गए व्रत, पूजा और दान से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है। पद्म पुराण में लिखा है कि वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर एक चांडाल भगवान विष्णु की कमल से पूजा कर के पुण्यवान और राजा बन गया था। वराह पुराण के मुताबिक इस तिथि पर तांबे की उत्पत्ति हुई थी। ये धातु भगवान विष्णु की तपस्या करने वाले असुर के मांस से बनी। इसकी कथा है कि एक असुर ने सालों तक भगवान विष्णु की तपस्या कर वरदान में मांगा कि मरने के बाद मेरे शरीर की भी पूजा हो। भगवान विष्णु ने ये ही वरदान दिया। जब देवताओं और असुरों का युद्ध हुआ तो उस राक्षस को भगवान विष्णु ने ही अपने चक्र से मारा। फिर उस राक्षस के मांस से तांबा बना। वो राक्षस भगवान का भक्त था, इसलिए भगवान विष्णु को तांबा प्रिय है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
भागवत कथा प्रवक्ता आचार्य राजेंद्र तिवारी के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि की शुरुआत 01 मई, की रात 10 बजकर 09 मिनट पर हो चुकी है और इसका समापन 2 मई, मंगलवार की रात 11 बजकर 17 मिनट पर होगा।
पूजा मुहूर्त - सुबह 08.59 से दोपहर 12.18 बजे तक।
त्रिपुष्कर योग - सुबह 05.40 से रात 07.41 बजे तक।
वैशाख द्वादशी की पूजा और व्रत अग्निष्टहोम के बराबर
भागवत कथा प्रवक्ता आचार्य राजेंद्र तिवारी के अनुसार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर गंगा और यमुना सहित किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस तिथि पर मथुरा में यमुना जल में तिल मिलाकर स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और इसके उपरांत अन्न और कपड़े के साथ ही तिल का दान करना चाहिए। ऐसा करने से अग्निष्टहोम करने के बराबर पुण्य मिलता है।
स्नान-दान से मिलता है अक्षय पुण्य
भागवत कथा प्रवक्ता आचार्य राजेंद्र तिवारी बताते हैं कि वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर उपवास रखते हुए पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए। इस दिन अन्नदान करने का विशेष महत्व बताया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार ऐसा करने से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है।
ऐसे करें पूजन
भागवत कथा प्रवक्ता आचार्य राजेंद्र तिवारी के अनुसार वैशाख द्वादशी पर सूर्योदय से पहले तिल के पानी से नहाएं। सफेद या पीले कपड़े पहनकर सोलह प्रकार की चीजों से भगवान विष्णु की पूजा और अभिषेक करें। पूजा में खासतौर से तांबे के बर्तन का इस्तेमाल करें। इस बर्तन में भगवान विष्णु को स्थापित कर शंख में जल-दूध भरकर अभिषेक करना चाहिए। पूजा के बाद चंदन, फूल, धूप और कमल का फूल जरूर चढ़ाएं। इसके बाद तुलसी पत्र चढ़ाकर केला या किसी भी मौसमी फलों का नैवेद्य लगाएं। ऐसा करने मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता।