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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 2 Sep 2022 3:29 pm IST


चीन को रोकने के लिए चाहिए तीसरा पोत


‘जो भी हिंद महासागर पर नियंत्रण स्थापित कर लेगा, उसका एशिया पर वर्चस्व होगा। यह महासागर 21वीं सदी में सातों समुद्रों की कुंजी बनेगा। इसी के जल पर दुनिया का भविष्य तय होगा।’ अमेरिकी एडमिरल अलफ्रेड थेयर माहन की 1897 में कही गई यह बात आज भारत के लिए काफी प्रासंगिक हो गई है, जब हिंद महासागर पर प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ बहुत बढ़ी हुई दिख रही है। भारत की चिंता इस होड़ में चीन को आगे निकलने से रोकने की है। हिंद महासागर को भारत का आंगन कहा जाता है। स्वाभाविक है कि वह अपने आंगन में किसी दूसरे को तांकझांक करने से रोकना चाहेगा। भारत के दीर्घकालीन आर्थिक और सामरिक हित हिंद महासागर से जुड़े हैं। इन हितों की सुरक्षा के लिए उसे दीर्घकालीन नजरिये से सैन्य तैयारी करनी होगी।

नौसैनिक शक्ति का प्रतीक
विश्व रंगमंच पर तेजी से उभरती आर्थिक और सैनिक शक्ति भारत को यदि आसपास के समुद्री इलाके पर अपना सिक्का जमाना है तो उसे अपने बाहुबल का प्रदर्शन कर दुनिया की दूसरी ताकतों को इस सागर पर अपनी आक्रामक मौजूदगी बनाने से रोकना होगा। 2 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में बना जो विमानवाहक पोत विक्रांत भारतीय नौसेना को सौंपने वाले हैं, वह भारत की इसी नौसैनिक शक्ति का प्रतीक है। समुद्री रणनीतिज्ञों के मुताबिक विक्रांत का भारतीय नौसेना में शामिल होना कई वजहों से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

पहला, यह पोत समुद्र में जहां भी मौजूद होगा, उसके आसपास के एक से डेढ़ हजार मील के इलाके पर संपूर्ण नियंत्रण रखेगा।दूसरा, यह अपने इलाके में दुश्मन देश के पोत को फटकने की इजाजत नहीं देगा।तीसरा, 31 लड़ाकू और टोही विमानों, हेलिकॉप्टरों और कई तरह की हमलावर और रक्षात्मक मिसाइलों से लैस स्वदेशी विमानवाहक पोत भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होकर दुनिया को आगाह कर रहा है कि कोई भी हिंद महासागर पर बुरी नजर ना डाले।


हिंद महासागर यूं तो पृथ्वी का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, लेकिन दुनिया का आर्थिक भविष्य इसी सागर से जुड़ा है। एशिया, यूरोप और अमेरिका को जोड़ने वाले हिंद महासागर से होकर ही दुनिया का 75 प्रतिशत से अधिक समुद्री व्यापार और आधे से अधिक खनिज तेल व्यापार होता है। इन समुद्री गलियारों की अहमियत को देखते हुए ही चीन एक खास रणनीति के तहत श्रीलंका के हंबनटोटा, पाकिस्तान के ग्वादर और अन्य छोटे द्वीप देशों के बंदरगाहों पर नौसैनिक सुविधाएं जुटाने में लगा है। हिंद महासागर के खुले इलाके में अपनी स्थायी मौजूदगी बनाने के लिए वह विमानवाहक पोतों को अधिक संख्या में हासिल करने की योजना को भी अंजाम दे रहा है। चीन के पास फिलहाल दो विमानवाहक पोत हैं, तीसरे पर काम चल रहा है और चौथे का निर्माण शुरू करने की तैयारी चल रही है। चीन के पास जब चार विमानवाहक पोत हो जाएंगे तो इनमें से एक को वह हमेशा हिंद महासागर में ही तैनात रखने की स्थिति में होगा।

हिंद महासागर पर दबदबा कायम करने की होड़ में भारत अगर चीन से पीछे छूट गया तो अपने ही ‘आंगन’ में उसकी पूछ घट जाएगी। श्रीलंका अपने बंदरगाह पर आने से चीनी पोत को मना नहीं कर सका, जिससे चीनी दबदबे की सचाई का संकेत मिल जाता है। भारत के लिए यह चेतावनी है।

इस चुनौती से निबटने के लिए जरूरी है कि भारत और भी विमानवाहक पोत हासिल करे।

भारत के पास फिलहाल दो विमानवाहक पोत हैं, जिनमें से एक रूस से हासिल आईएनएस विक्रमादित्य है और दूसरा स्वदेशी पोत विक्रांत होगा।
समुद्री हितों की रक्षा के लिए भारत को अपने पश्चिमी और पूर्वी दोनों तटीय इलाके में स्थायी तौर पर एक-एक विमानवाहक पोत तैनात रखना होगा।
साल में दो से तीन महीने के लिए विमानवाहक पोतों को मेनटेनेंस के मकसद से शिपयार्डों में भेजना होता है। इसलिए अक्सर ऐसे मौके आएंगे, जब भारत के पास एक ही विमानवाहक पोत सक्रिय तौर पर उपलब्ध होगा।
इस स्थिति से बचने का उपाय यही है कि तीसरा पोत हासिल करने का फैसला जल्द किया जाए।
करीब 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से विक्रांत बनाकर भारत ने अपनी इंजीनियरिंग, डिजाइन और तकनीकी क्षमता दिखा दी है। इसके साथ वह पोत बनाने वाले अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस, फ्रांस, इटली, स्पेन, दक्षिण कोरिया जैसे देशों के चुनिंदा समूह में भी शामिल हो गया है। विक्रांत बनाने वाले कोचीन शिपयार्ड का दावा है कि वह अगला पोत महज आठ साल में बना कर दे देगा। हालांकि विक्रांत बनाने में करीब दो दशक लग गए, लेकिन इससे हासिल अनुभव अगला पोत बनाने में काम आएगा।

विक्रांत से विक्रांत तक
भारत के सामरिक हितों की रक्षा के लिए दीर्घकालीन नजरिये से समुद्री रणनीति को लागू करना जरूरी है। यह अहसास पचास के दशक में ही भारतीय नेतृत्व को हो गया था। शायद इसी नजरिये से 1960 में ही भारतीय नौसेना को पहली बार विमानवाहक पोत सौंपा गया। तब ब्रिटेन से आयातित इस पोत का नाम भी विक्रांत ही था, जो अब रिटायर हो चुका है। उसी के नाम पर नए स्वदेशी पोत का नाम विक्रांत रखा गया है। भारतीय नौसेना को दूसरा विमानवाहक पोत विराट भी 1988 में ब्रिटेन से ही खरीद कर दिया गया था। तब दक्षिण पूर्व एशिया के देशों ने भारत की समुद्री महत्वाकांक्षाओं में गैरजरूरी विस्तार का आरोप लगाया था। विराट भी अब रिटायर हो चुका है। करीब एक दशक पहले मिला तीसरा विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य रूस से आयातित था। अब विक्रमादित्य के साथ विक्रांत भारतीय नौसेना की शान बनकर हिंद महासागर में उसके हितों की रक्षा में मुस्तैदी से तैनात रहेगा।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स